Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : आसो: २४९८
निर्मळपणे मेरूसमान अकंपपणुं आवे छे गमेतेवी प्रतिकूळतामां पण तेनी श्रद्धा डगती
नथी. आवुं सम्यक्त्वरूपे परिणमन करी रहेल जीवनां दुष्ट अष्ट कर्मोनो क्षय थाय छे.
जुओ, आ सम्यक्त्वनुं सामर्थ्य! सम्यक्त्व थतां अनंताकर्मो खरवा मांडे छे, गुणश्रेणी
निर्जरा शरू थाय छे. मोक्षने माटे तेने आत्मानुं ज अवलंबन रह्युं. मिथ्यात्वनुं मूळ
कपाई गयुं. मोक्षनुं बीज रोपायुं ने अंकूरा फूटया. कर्मो तरफनुं वलण न रह्युं एटले
कर्मो निर्जरतां जाय छे. आवी रीते मिथ्यात्वरूपी बीज नाश थयुं त्यां कर्मनुं विषवृक्ष
अल्पकाळमां सुकाई जाय छे. अनंतानुबंधीना कषायो तो नष्ट थया, बाकीनां कषायो
पण घणा मंद थई गया. तेने क्रमे–क्रमे शुद्धता वधती जाय छे, ने अनुक्रमे चारित्र तथा
शुक्लध्याननो सहकार मळतां सर्वे कर्मो नष्ट थई, केवळज्ञान अने मोक्ष प्रगटे छे. आ
बधो सम्यग्दर्शननो महिमा छे. जेने सम्यग्दर्शन थयुं तेना मोक्षना दरवाजा खुली गया.
जे उत्तमपुरुषो पूर्वे महिमा छे छे. जेने सम्यग्दर्शन थयुं तेना मोक्षना दरवाजा खुल्ली
गया. जे उत्तमपुरुषो पूर्वे सिद्धि पाम्या छे, अत्यारे पामे छे, अने भविष्यमां पामशे ते
बधुं आ सम्यक्त्वनुं ज माहात्मय जाणी, सम्यक्त्वने ज सिद्धिनुं मूळकारण जाणी, तेने
प्राप्त करी, तेमां ज एकाग्रता करवी. आ सम्यग्दर्शन धर्मनुं बीज छे, कल्पवृक्ष छे,
चिन्तामणि छे. कामधेनुं छे. छ खंडना राजवैभव वच्चे रहेला चक्रवर्ती पण आवा
सम्यग्दर्शननी आराधना करे छे. सम्यक्त्वी जाणे छे के अहो, मारी ऋद्धि–सिद्धि मारा
चैतन्यमां छे. जगतनी ऋद्धिमां मारी ऋद्धि नथी. जगतथी निरपेक्षपणे मारामां ज मारी
सर्वे रिद्धि–सिद्धि भरेली छे.
रिद्धि–सिद्धि–वृद्धि दीसे घटमे प्रगट सदा,
अंतरकी लक्ष्मी सो अजाची लक्षपती है;
दास भगवंतको उदास रहे जगत सो.
सुखीआ सदैव ऐसे जीव समकिती है:
समकिती धर्मात्मा गृहस्थपणामां रह्या छतां पोताना आत्माने अनुभवे छे.
मारी चैतन्यरिद्धि–सिद्धि सदाय मारा अंतरमां वृद्धिगत छे. मारा अंतरनी
चैतन्यलक्ष्मीनो हुं स्वामी छुं. जगत पासेथी कांई लेवुं नथी. ते जिन भगवाननो दास
छे. अने जगतथी उदास छे. सम्यग्दर्शन ज धर्मना सर्वे अंगोने सफळ करे छे. क्षमा–
ज्ञान–आचरण विगेरे सम्यग्दर्शन वगर धर्म नाम पामतां नथी. सम्यग्दर्शन वगरनुं
ज्ञान ते अज्ञान छे, आचरण ते मिथ्याचारित्र छे, अने क्षमा ते अनंतानुबंधी
क्रोधसहित छे;–माटे सम्यग्दर्शनथी ज क्षमा–ज्ञान–चारित्र वगेरेनी सफळता छे.