Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: आसो: २४९८ आत्मधर्म : ३७ :
वीतराग – विज्ञान – प्रश्नोत्तरी (त्रीजो भाग)
छहढाळाना प्रवचनोनुं त्रीजुं पुस्तक (वीतरागविज्ञान
भाग ३) आवती सालना आत्मधर्मना ग्राहकोने भेट मळवानुं
छे; तेना परिशिष्टमां जे टूंका प्रश्नोत्तर आपेल छे तेनो थोडोक
भाग अहीं आप्यो छे, ते जिज्ञासुओने गमशे.
प्रश्न:– बीजी ढाळना अंतमां शुं भलामण
करी छे?
उत्तर:– हे जीव! हवे तुं आत्महितना
पंथमां लाग. ’
१. जीवना हितनो पंथ शुं छे?
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र.
२. जीवने दुःखनुं कारण शुं छे?
मिथ्यादर्शन–मिथ्याज्ञान–मिथ्याचारित्र.
३. सुख कोने कहेवाय?
जेमां आकुळता न होय तेने.
४. एवुं सुंख क््यां होय?
जीवनी मोक्षदशामां पूरुं सुख होय.
प. सुखी थवा माटे जीवे शुं करवुं जोईए?
जीवे मोक्षना मार्गमां लागवुं जोईए.
६. सत्यार्थरूप मोक्षमार्ग क््यो छे?
निश्चयमोक्षमार्ग ते ज सत्यार्थरूप छे.
७. व्यवहारमोक्षमार्ग केवो छे?
ते कारणरूप एटले निमित्तरूप छे,
सत्यार्थरूप नथी.
८. मोक्षना सत्यार्थ मार्ग केटला छे?
साचो मोक्षमार्ग एक ज छे, बे नथी.
९. निश्चय अने व्यवहार बंनेने साचा
मोक्षमार्ग माने तो?
–तो पं. टोडरमलजीए तेनेमिथ्याबुद्धि
कहेल छे.
१०. जैनसिद्धांतनुं खरूं रहस्य कई रीते
समजाय?
निश्चयनय वडे जे निरूपण कर्युं होय
तेने तो सत्यार्थ एम ज मानी तेनी
श्रद्धा करवी; अने व्यवहारनय वडे
जे निरूपण कर्युं होय तेने असत्यार्थ
मानी (खरेखर एम नथी एम
समजी) तेनी श्रद्धा छोडवी. आ रीते
जैनसिद्धातनुं