Atmadharma magazine - Ank 348
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : आसो: २४९८
छे. ज्ञान अने रागनी एकताबुद्धिमां ते वात समजाय नहि.–अहा, आ वात तो
समकिती ज झीली शके, माने अने अनुभवे; बाकी अज्ञानीना गजां नथी के आ वात
झीलीने अंदर पचावी शके. धर्मी अंदर पोताने ‘परमआनंदनो नाथ’ देखे छे.
ज्ञानपरिणति–आनंदपरिणति–श्रद्धापरिणति–ते सर्वे आत्मपरिणाममां आत्मा पोते
स्वतंत्रपणे व्यापीने, तेनो कर्ता थाय छे, पोते ज स्वाधीन स्वतंत्रपणे ते रूप थाय छे.
रागादिभावरूपे पोते परिणमतो नथी, तेमां तन्मय थतो नथी. धर्मी तो रागथी भिन्न
स्वसंवेदनज्ञानरूप थईने मति–श्रुतज्ञानमां केवळज्ञानने बोलावे छे....ज्ञानमां ते रागने
के विकल्पने नथी बोलवतो, पण केवळज्ञान जेमां भर्युं छे एवा अखंड ज्ञानस्वभावने
पोताना मति–श्रुतज्ञानवडे अनुभवतो थको ते केवळज्ञानने साद पाडे छे.–आवी
ज्ञानदशावडे ज ज्ञानी ओळखाय छे. ज्ञानीना अंतरनी ऊंडी चेतनाने ज्ञानी ज जाणे छे;
उपरटपके जोनार अज्ञानीनुं गजुं नथी के ज्ञानीनी अंतरचेतनाने ओळखी शके.
व्याप्य–व्यापकपणारूप एकता तो तत्स्वरूपमां ज होय, एक जातना भावमां ज
व्याप्य–व्यापकपणुं होय, पण अतत्स्वरूपमां एटले के भिन्न भिन्न जातना भावोमां
एकतारूप व्याप्य–व्यापकभाव न होय. ज्ञानने अने रागने ततस्वरूपपणुं नथी एटले
एकपणुं नथी, पण अतत्पणुं छे एटले भिन्नपणुं छे; तेथी ज्ञानमां राग रहेतो नथी,
ने रागमां ज्ञान रहेतु नथी; बंनेने अत्यंत भिन्नपणुं छे तेथी तेमने कर्ताकर्मपणुं नथी.
आवा परभावोथी भिन्न ज्ञानपणे पोताने अनुभवनार जीव ज्ञानी छे. रागना
कर्तृत्वथी रहित एवो ते ज्ञानी ज्ञानचेतनाने ज पोताना कार्यपणे करतो थको शोभे छे.
ज्ञान ज जेनुं कार्य छे एवा पोताना आत्माने ते जाणे छे.
शुद्धस्वभावमां जेनी द्रष्टि तन्मय थई छे तेने पोतामां रागनुं अस्तित्व ज क््यां
छे? एटले तेने रागादिनुं कर्तुत्व रहेतुं नथी. जे रागादि के कर्म–नोकर्म छे ते बधाय
ज्ञानथी बहार ज्ञेयपणे छे, पण ज्ञानीना कार्यपणे नथी. ज्ञानीनुं कार्य तो ज्ञानमय ज छे.
अज्ञानीने जे रागादिभावो थाय छे तेमां तथा कर्म–नोकर्ममां एकत्वबुद्धि छे,
तेथी ते अज्ञानीनो अज्ञानभाव ज निश्चयथी रागादिनो कर्ता छे, तथा ते कर्मनोकर्मनो
पण निमित्तकर्ता थाय छे. रागथी जुदुं चेतनस्वरूप आत्मानुं कोई अस्तित्व तो
अज्ञानीने देखातुं नथी. जो चेतनस्वरूप भगवान आत्माने द्रष्टिमां ल्ये–तो तो ते
पर्याय रागथी जुदी पडीने तेनी एकर्ता थई जाय.
आवी एकत्वस्वभावनी ज्ञानचेतनारूपे, अने रागादिना अकर्तारूपे जे
परिणम्यो