प्रपंचथी परांग्मुख छे ने आनंदमय मोक्षनी सन्मुख छे.
चैतन्यप्रकाशी तत्त्व मारी अनुभूतिमां आवी गयुं छे तेथी ते विद्यमान छे, जयवंत छे.
हतुं, पण अंतर्मुख थईने हवे जाण्युं के हुं तो आ परमतत्त्व छुं, – त्यां ते पोताने
सुलभ अने प्रसिद्ध थयुं. शास्त्रो जेनो अगाध महिमा वर्णवे छे ते हुं ज छुं – एम
जाणतां पोतानुं तत्त्व पोताने सुलभ थई गयुं – पर्यायमां प्रसिद्ध थई गयुं. ‘अहो,
मारुं आवुं सरस अचिंत्य तत्त्व! ’ एम धर्मी सदाय निजभावना भावे छे....
अचिंत्य महिमा लावीने फरी फरी तेमां उपयोग जोडे छे.
जे स्वानुभूतिवडे मारामां प्रसिद्ध थयुं छे, ते तत्त्वने मनना विकल्पो साथे पण मेळ
नथी, त्यां बहारमां बीजानी शी वात? बहारना जगत साथे मारा अंर्ततत्त्वने कांई
संबंध नथी. अनंत आनंद अने शांतिनुं धाम – एवुं जे स्वघर, तेमां ज मारा सहज
तत्त्वनो वास छे.
प्रसिद्ध वर्ते छे. स्वानुभव–प्रसिद्ध आवा स्वतत्त्वमां नमेला धर्मात्मा जगतना बाह्य
प्रपंचोथी परांग्मुख छे..... ने आनंदमय मोक्षनी सन्मुख छे.