कारतक २४९९ ‘‘आत्मधर्म’’ ६
अहो, आत्माना परमस्वभावना महिमानी शी वात! तेनी
भावना ए ज बेसता वर्षनी श्रेष्ठ बोणी छे. देव–गुरु – शास्त्रोए पण
आ परम स्वभावनो महिमा गायो छे, तेथी आ परमस्वभावी
आत्माने द्रष्टिमां लईने तेनी भावना करतां तेमां देव – गुरु शास्त्रनी
आज्ञा पण आवी गई.
आवा चैतन्यस्वभावनी जेणे भावना करी तेणे
पोताना आत्मामां मोक्षनो मंगळकुंभ मुक््यो.
आत्मा त्रिकाळ आनंदमूर्ति परम कळासहित छे; आवा
आत्मानी भावना ते पण परम कळा छे, ते आनंदसहित छे. आत्मा
एकला चैतन्य प्रकाशनो पुंज, तेनी भावनावडे पर्यायमांथी अनादिना
अज्ञान अंधकारनो नाश थयो ने आनंदमय अनंतकळा सहित
सुप्रभात ऊग्युं. आवा आत्माने ध्यावतां – अल्पकाळे संसारनो अंत
आवीने मुक्ति थाय छे.
(बेसता वर्षे वीतरागविज्ञान पुस्तकनो त्रीजो भाग पू.
गुरुदेवना मंगलहस्ते प्रकाशित थयो हतो. बेंगलोरथी नवा वर्षना
खुशखबर तरीके श्री मनहरभाई लखे छे के बेंगलोरमां समवसरण –
जिनमंदिर बनाववा माटे जग्या लीधी छे ने कबजो मली गयो छे.
जेने चैतन्यने साधवानो उत्साह छे तेने चैतन्यना
साधक धर्मात्माने देखतां पण उत्साह अने उमळको आवे
छे: अहा! आ धर्मात्मा चैतन्यने केवा साधी रह्या छे!
एम तेने प्रमोद आवे छे, अने हुं पण आ रीते चैतन्यने
साधुं – एम तेने आराधनाने उत्साह जागे छे.