Atmadharma magazine - Ank 349
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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कारतक २४९९ ‘‘आत्मधर्म’’
ज्ञानी तो ज्ञानस्वरूप थयो, ते ज्ञानात्मा जराय अज्ञानस्वरूप
परिणमतो नथी एटले रागरूपे ते जराय थतो नथी. सर्वभावोमां
ज्ञानत्व ज प्रकाशे छे. आवा ज्ञानमां राग के कर्मबंधन छे ज नहीं.
अहा, आत्माना चैतन्यभावनी शी वात? ए चैतन्यनी
झलकनां तेज बहारनी द्रष्टिथी परखाय नहीं. जेम हीरा–मोतीनां पाणी
पटेलीयानी पछेडीथी न परखाय, तेम चैतन्यहीरानी अचिंत्य चमक,
ते रागवडे न परखाय; राग तो पर तरफनो भाव छे तेना वडे
स्वभाव केम परखाय? रागथी जुदा पडेला ने स्व तरफ वळेला भाव
वडे ज आत्मस्वभाव परखाय छे. अनंतगुणनां पासाथी चैतन्यहीरो
चळकी रह्यो छे. – एमां जेनी पर्याय वळी तेने आत्मामां सदाय
दीवाळी ज छे.
बेसतावर्षे मंगलरूपे ज्ञानने प्रसिद्ध करतां गुरुदेवे कह्युं के
जगतमां जे जे ज्ञेयो जणाय छे तेओ ज्ञानने ज प्रसिद्ध करी रह्या छे.
केमके ज्ञानमां ज ते बधा जणाय छे. ज्ञानना अस्तित्व वगर कंई पण
जणाय नहि. ज्ञेयो कांई ज्ञानस्वरूप नथी, पण ज्ञेयो जणावापणुं
ज्ञानना ज अस्तित्वमां छे. आम ज्ञानपणे पोतानी अनुभूति करतां
आत्मा अनुभवाय छे. ज्ञाननी अनुभूति आबालगोपाल सौने थाय
छे, पण तेमां ‘आ ज्ञाननी अनुभूति छे ते हुं छुं’ एम ज्ञाननी प्रतीत
करतो नथी. जे जे पदार्थो जणाय छे तेनुं ज्ञान ते हुं छुं– एम ज्ञानपणे
पोते पोताने जाणवो – अनुभववो ते अपूर्व सुप्रभात मंगल छे.
भाई, ज्ञाननुं अस्तित्व छे ते तुं ज छो. तारा ज्ञानरूप
अस्तित्व वगर ज्ञेयो जणाय शेमां? ज्ञेयो तो तारामां नास्तिरूप छे,
तारुं अस्तित्व तो ज्ञानरूप छे. – आवा ज्ञानस्वरूप आत्मानी
अनुभूतिवडे आत्मामां आनंदमय नवुं वर्ष बेसाड.
नियमसार गाथा. ११९ ना प्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं के अहो,
आत्मा परमस्वभावथी परिपूर्ण छे, तेनी सन्मुख परिणतिरूप जे
भावना छे तेमां सामायिक – प्रतिक्रमण – क्षमा – तप वगेरे बधा
धर्मो समाई जाय छे; एटले परम स्वभावनी अभेद भावनामां बधा
धर्मो समाई जाय छे, माटे आत्माना ते परमस्वभावने अवलंबनारा
भावरूप ध्यान ते सर्वस्व छे. आखुं जैनशासन तेमां समाई जाय छे.