ज्ञानत्व ज प्रकाशे छे. आवा ज्ञानमां राग के कर्मबंधन छे ज नहीं.
ते रागवडे न परखाय; राग तो पर तरफनो भाव छे तेना वडे
स्वभाव केम परखाय? रागथी जुदा पडेला ने स्व तरफ वळेला भाव
वडे ज आत्मस्वभाव परखाय छे. अनंतगुणनां पासाथी चैतन्यहीरो
चळकी रह्यो छे. – एमां जेनी पर्याय वळी तेने आत्मामां सदाय
दीवाळी ज छे.
केमके ज्ञानमां ज ते बधा जणाय छे. ज्ञानना अस्तित्व वगर कंई पण
जणाय नहि. ज्ञेयो कांई ज्ञानस्वरूप नथी, पण ज्ञेयो जणावापणुं
ज्ञानना ज अस्तित्वमां छे. आम ज्ञानपणे पोतानी अनुभूति करतां
आत्मा अनुभवाय छे. ज्ञाननी अनुभूति आबालगोपाल सौने थाय
छे, पण तेमां ‘आ ज्ञाननी अनुभूति छे ते हुं छुं’ एम ज्ञाननी प्रतीत
पोते पोताने जाणवो – अनुभववो ते अपूर्व सुप्रभात मंगल छे.
तारुं अस्तित्व तो ज्ञानरूप छे. – आवा ज्ञानस्वरूप आत्मानी
अनुभूतिवडे आत्मामां आनंदमय नवुं वर्ष बेसाड.
धर्मो समाई जाय छे; एटले परम स्वभावनी अभेद भावनामां बधा
धर्मो समाई जाय छे, माटे आत्माना ते परमस्वभावने अवलंबनारा
भावरूप ध्यान ते सर्वस्व छे. आखुं जैनशासन तेमां समाई जाय छे.