Atmadharma magazine - Ank 349
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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कारतक २४९९ ‘‘आत्मधर्म’’
प. टडरमल्लजी लख छ क ‘अध्यत्मरसन रसक
जीवो बहु ज थोडा छे; धन्य छे तेमने जेओ स्वानुभवनी
वार्ता पण करे छे. ’ अहा! स्वानुभवनी र्चा करे तेने
पण धन्य कह्या, तो जेओ स्वानुभूतिरूपे साक्षात्
परिणम्या छे एवा संतना महिमानी शी वात! एवा
अनुभवी जीवोनो साक्षात् सत्संग मळ्‌यो ए केवा धन्य
भग्य!
अहा, अध्यात्मरसनी आवी वात! आत्माना परम
प्रेमथी एनी विचारधारा, एनो निर्णय, ने एनो
अनुभव, ए ज करवा जेवुं छे, एकांतमां, एटले मनमांथी
बीजी बधी चिंतानो कलेश छोडीने, प्रसन्नचित्ते एने माटे
अभ्यास करवो जोईए. आ मनुष्य भवमां खरूं करवा
जेवुं आ ज छे, ने अत्यारे खरो अवसर छे.
‘अब अवसर आ चुका है’’