Atmadharma magazine - Ank 349
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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कारतक २४९९ ‘‘आत्मधर्म’’ १४
पर्यायमां आनंदनुं जरा वेदन प्रगटयुं त्यां खबर पडी के मारो आत्मा आखो
आनंदस्वरूप छे.
पर्यायमां आलोचना प्रगटी त्यां खबर पडी के आत्मा त्रिकाळ सहज आलोचना
स्वरूप ज छे.
पर्यायमां जे–जे गुणांश प्रगट्या ते–ते बधा गुणस्वभावो आत्मामां त्रिकाळ छे.
गुण त्रिकाळ बधाने छे – पण तेनुं भान त्यारे थयुं के ज्यारे पर्यायमां तेना
अंशो प्रगट्या. ते अंशने अंशी साथे एकता छे, एटले के ते अंश, अंशी साथे अभेद
थईने तेने श्रद्धे छे – जाणे छे – अनुभवे छे. तेमां वच्चे रागादि विषमभाव नथी एटले
ते परिणाम परम समतारूप छे. परम शांत समता परिणाम वगर चैतन्यप्रभु देखाय
नहीं; ने चैतन्यप्रभुने देख्या वगर साची समता थाय नहीं. सम्यग्दर्शन ते पण
रागरहित वीतरागी समतारूप छे. पर्यायमां स्वभावना आश्रये वीतरागी समतारूप
परिणमन थवा मांडयुं त्यारे खबर पडी के अहो! आवा समतारसनो आखो पिंड हुं छुं.
निजगुणथी घेरायेला ज्ञानी, जगतमां बीजा कोईथी घेराता नथी
अहा, हुं तो मारा अनंत गुणस्वभावथी घेरायेलो, – त्यां मने बीजुं कोण घेरी
शके? संयोगनो तो घेरो मने नथी, ने कर्मोनो के रागादि परभावोनो घेरो पण मारा
चैतन्यभावमां नथी; मारो चैतन्यस्वभाव तो श्रद्धा – ज्ञान आनंद– प्रभुता वगेरे
अनंत स्वभावगुणोथी घेरायेलो – वींटायेलो – व्यापेलो छे. आवा स्वभावमां जे घूसी
गयो तेने आधि –व्याधि – उपाधिनो कोई घेरो रहेतो नथी चैतन्यने भूलेला
अज्ञानीओ संयोगना ने राग–द्वेषना घेराथी घेराई जाय छे; पण, गमे तेवा संयोग हो
अने रागादि पण हो, छतां ते बधाना घेराथी छूटवानो एक ज उपाय छे के
स्वभावघरमां घूसी जवुं, –एम जाणीने ज्ञानी तो निज स्वभावमां घूसी जाय छे. एवा
ज्ञानी कोई संयोगना घेराथी घेराता नथी – मुंझाता नथी – स्वरूपने भूलता नथी.
आवी तो धर्मीना एक निःशंक्ति – अंगनी ताकात छे; ने एवा तो अनंता गुणना
सम्यक्भावो धर्मीने एकसाथे वर्ती रह्या छे.
वचन – विकल्पमां ‘हुं’ नथी, अनुभूतिमां हुं छुं
चैतन्यना अनंतगुणना महा रसथी भरेला अतीन्द्रिय आनंदनो जेने स्वानुभव
थयो ते धर्मी जाणे छे के – वचन–विकल्पमां जे कांई आवे छे ते बधुं अधूरुं छे; वचन –
विकल्पथी पार ज्ञाननी अनुभूतिमां जे आवे छे ते ज पूरुं छे. हे जीव! तुं एकवार
आवी अनुभूतिनो लहावो तो ले. अनुभूतिमां तारा तत्त्वनी कोई अद्भूतता देखतां
तने अजब – गजबनो आनंद थशे.