Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९९ आत्मधर्म : ७ :
देव – गुरुने निरंतर सेववामां आववा छतां, शिष्यना ज्ञानपरिणामना दाता
ते देव – गुरु थई शकता नथी. शिष्यनो आत्मा पोते ज पोताना परिणामस्वभाव
वडे पोताना ज्ञानपरिणामे ऊपजे छे; कोई बीजो तेनो दाता नथी, कर्ता नथी. अज्ञानी
जे पोते ज्ञानपरिणामरूपे नथी ऊपजतो, ते भले गमे तेटलो वखत देव–गुरुने सेवे
तोपण देव–गुरु तेने ज्ञानना दाता थई शकता नथी. जीव पोते ज्ञानपरिणमे स्वयं
परिणमे त्यारे ज ते ज्ञानी थाय छे.
हवे त्रिकाळी द्रव्यमां पर साथे निमित्त – नैमित्तिकपणुं पण नथी. जो त्रिकाळी
द्रव्य निमित्तपणे होय तो ते कदी छूटे नहि, सदाय निमित्तपणे रह्या करे एटले ते
स्वभाव थई जाय. – तो तो जीवने कर्मनुं निमित्तपणुं कदी छूटे नहि एटले द्रव्यमां
परनुं निमित्तपणुं माननार जीवने कदी संसारथी छूटकारो थतो नथी, केमके तने
परसन्मुखता छोडीने स्वसन्मुख थवानो अवकाश ज न रह्यो.
हवे पर्यायनी वात; पर्यायमां पण योग अने उपयोग (रागादि अशुद्धभावो)
ज कर्मनां निमित्त छे; ते अशुद्ध योग– उपयोग क्षणिक छे, ते त्रिकाळ नथी. अने ते
क्षणिक अशुद्ध योग – उपयोगनुं कर्तत्व अज्ञानीने छे, ज्ञानीने तेनुं कर्तृत्व नथी. माटे
अज्ञानीना ज योग अने रागादिभावो कर्मनां निमित्त छे; धर्मीने तो योग अने
रागादिभावो पोतामां छे ज नहि, तेने तो ज्ञान– आनंदस्वरूप पोतानो भाव छे, तेनो
ज ते कर्ता छे; रागादिभावो तो तेना ज्ञानथी जुदा परज्ञेयमां जाय छे.
अज्ञानी अज्ञानभावे पण मात्र रागादिनो कर्ता थाय छे; परनी अवस्थाने ते
करतो नथी; पर साथे निमित्तपणुं तेना रागादिमां छे, पण ते परमां तन्मय थईने
तेने करतो नथी. अज्ञान छूटतां निमित्तकर्तापणुं पण रहेतुं नथी.
धर्मीने पोतानी ज्ञानचेतनामां रागादि के पर चीजो ज्ञेयपणे निमित्त छे. पोते
तो तेनो कर्तापणे निमित्त नथी. पण ऊल्टुं तेओ ज्ञानमां निमित्त छे. ज्ञान तेने जाणे
छे के आ काळे आवा योग – उपयोग ज्ञानथी भिन्नपणे वर्ते छे, ने परनां कार्य परमां
वर्ते छे. मारी ज्ञानपरिणति मारामां वर्ते छे. पर साथे के रागादि साथे तेनो संबंध
नथी. – आम ज्ञानीनी परिणति तो ऊंडे ऊंडे अंदर आत्मामां ऊतरी गई छे, तेमां
बहारनुं निमित्तपणुं पण नथी.
सामे वस्तुमां कार्य तो थाय ज छे – ते तेनुं उपादान छे. अहीं ज्ञानी पोताना
उपादानथी ज्ञानभावरूपे परिणम्यो, तेने तो पर साथे निमित्तकर्तानो आरोप पण न
रह्यो. कर्तानो आरोप कोने आवे? के पोतामां रागादि, अशुद्धभावने उपादानपणे जे