कार्यमां निमित्त छे. धर्मीने पोताना उपादानमां रागादि तो छे नहि, तेने तो शुद्ध
ज्ञानभावनुं ज कर्तृत्व छे, तेथी परना कार्यमां निमित्तणानो आरोप पण तेने
आवतो नथी..
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परिणाम – परिणामीभावथी कर्तापणुं एक स्वद्रव्यमां ज होय छे.
भावनुं क्षणिक कर्तापणुं अज्ञानीने अज्ञानभावमां छे; तेथी ते अज्ञानीना ज
क्षणिक योग –रागादि अशुद्धभावोमां ज पर साथे निमित्तकर्तापणुं छे.
ज्यां भेदज्ञान थयुं, परथी भिन्न आत्मा जाण्यो अने रागादि अशुद्धभावोथी
जाय छे; ने निर्मळ ज्ञानादि शुद्धभावनुं ज कर्तापणुं रहे छे.
हाथमां तलवार लईने लडता देखाय.... त्यां ते वखते खरेखर ज्ञानी पोताना
ज्ञानभावरूपे ज परिणमतो थको तन्मयपणे तेने ज करे छे, ते वखतना क्रोधादिनुं के
नथी. ते ज वखते अज्ञानी पोताना ज्ञानस्वभावने भुलीने, अज्ञानथी क्षणिकक्रोधादि
भावोने तन्मयपणे करे छे, ने तलवारनी क्रियामां तेने निमित्तकर्तापणुं छे. जुओ,
बहारमां सरखुं लागे पण ज्ञानी ने अज्ञानीना अंतरमां केटलो तफावत छे!
तथा तलवारना कर्तारूपे ज अनुभवतो थको, अज्ञानभावने ज करतो थको संसारमार्गमां
ज ऊभो छे. ज्ञानभाव अने अज्ञानभावनी भिन्नताने ज्ञानी ज ओळखे छे, ते ज्ञानी
रागादि अज्ञानभावोनो कर्ता थतो नथी के परनो निमित्तकर्ता पण ते नथी.