Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९९ आत्मधर्म : ९ :
सम्यग्दर्शन – लेखमाळा: लेख नं. ३
“सम्यग्द्रर्शन थतां पहेलांं अने थया पछी जीवनी रहेणी–करणी
तथा विचारधारा केवा प्रकारनी होय? ” ते संबंधी बे निबंध आत्मधर्म
अंक ३४८ मां आपे वांच्या; आ त्रीजो निबंध संशोधनसहित रजु थाय
छे. आ निबंधोद्वारा सम्यक्त्वभावनानुं घोलन करतां दरेक जिज्ञासुने
प्रसन्नता थशे आ निबंध लखनार छे
– भाईश्री अमृतलाल जे. शाह, प्रांतीज.
“रजकण तारां रखडशे, जेम रखडती रेत;
नरभव पाछो नहि मळे, चेत, चेत जीव चेत!”
अनंतकाळे क्यारेक महाभाग्यना उदयथी आ जीवने मनुष्यपणुं मळे छे, अने तेमां
पण उत्तमकूळ तथा जैनधर्मना संस्कार मळवा बहु दुर्लभ छे. आ बधुं मळ्‌या पछी पण
जीवने कोई आत्मज्ञानी संत – गुरुनो समागम प्राप्त थाय तो ते खरेखर सोनामां सुगंध
मळवा जेवो उत्तम योग थाय. त्यारबाद आवा सत्समागम द्वारा सींचाता धर्म संस्कारथी
जीवने एम थाय के अरे! आ मनुष्यगति अने उत्तम जैन धर्मनो सुयोग मळ्‌यो तेनो
सदुपयोग जो आत्महितार्थे नहि करी लउं तो आ देहनां रजकणो छूटा पडीने पवनमां
ऊडती रेतीनी माफक वींखाई जशे. – पछी फरीने आवो मनुष्यअवतार कोण जाणे क््यारे
मळशे! जो आत्मानी दरकार वगर आ अवसर गुमाव्यो तो पछी पस्तावानो पार नहि
रहे, अने दुःखी थईने चोराशीना फेरामां रखडवुं पडशे. माटे हे जीव! तूं चेत! अने
सावधान था!! तारा समजण करवानां टाणां आवी पहोंच्या छे. प्रमाद तज अने
मिथ्यात्वरूपी भ्रमने भांगीने आत्माने ओळख.
आवी तीव्र लागणी जिज्ञासु जीवने थतां ज तेना विचारोमां परिवर्तन आवे
छे अने तेने संसारनुं सुख खारूं – खारूं लागे छे. तेने क््यांय शांति लागती नथी.
कुटुंब – सगांसबंधी वगेरे बधुं तेने पारकुं लागे छे, अने सत्यसमागम तथा
वैराग्यप्रेरक प्रसंगो तेने विशेष गमे छे. तेने क्षणे क्षणे एम थतुं होय छे के हुं शुं करूं!
क््यां जाउं? कोनुं शरणुं शोधुं के जेथी मने शांति थाय; कोनो सत्संग करुं के जेथी
आत्मानी समज पडे! अरे, आ संसारनी घटमाळमां मने क््यांय चेन नथी. –