कोना संबंधे वळगणा छे? राखुं के ए परिहरुं?
भक्तिमां लीन करे छे; पुरुषार्थने द्रढ करवा पोतानी वृत्तिओने आमतेम रखडती
रोकीने आत्मविचारमां जोडवा मथे छे.
मननुं समाधान शोधवा तत्पर थाय छे. ते अत्यंत आर्दभावे श्री गुरुने विनंति करे
छे के: हे प्रभो! आ संसारभ्रमणथी हवे हुं थाकयो छुं, संसारसुख मने व्हालुं नथी;
संसारथी छूटीने मारो आत्मा परमसुखने पामे एवो उपाय कृपा करीने मने बतावो.
संसारनां सुख– दुःखनां वमळमां भटकतो मारो जीव हवे थाक््यो छे. तो हवे साचुं
सुख क््यांथी मळे? एवुं परम तत्त्व मने बतावो. आम अंतरनी जिज्ञासा पूर्वक गुरु
पासेथी स्व–परनी भिन्नतानुं स्वरूप सांभळता – सांभळतां तेने वधारे विचारवानुं
मन थाय छे; जेम जेम विचार करे छे तेम तेम ऊंडाणमां ते वात तेने रुचती जाय छे,
अने गुरुवचनमां द्रढतापूर्वक आस्था थाय छे; अंते तत्त्वप्रतीति थाय छे अने कोई
अद्भुत चमत्कारिक चैतन्यतत्त्व तेने कंईक लक्षगत थाय छे, पछी तेमां ज वधारे ऊंडो
ऊतरीने ते तेना मनन–चिंतनमां मशगुल बने छे; – स्व–परनो अत्यंत भेद लक्षमां
लई रागरहित, शुद्ध आत्मद्रव्य केवुं होय ते विचारे छे. आवी विचार धाराथी, तेने
पहेलांं जे अशांति अने आकुळता हती ते हवे कंईक ओछी थतां तेना पुरुषार्थने वेग
मळे छे, अने विश्वास जागे छे के आ ज मार्गे मने आत्मानी शांति मळशे. – पछी
पुरुषार्थनी स्वसन्मुख गतिने वेग आपे तेम संसारथी विरक्तता – प्रेरक बार
भावना विचारे छे. पुण्य – पापनी शुभाशुभलागणीओ, तेने आकुळता समजीने
तेनाथी पार चैतन्यमां चित्त जोडवा मथे छे, जेम जेम मथे छे तेम तेम तेनी मुंझवण
मटती जाय छे ने आत्मानो चितार स्पष्ट थतो जाय छे.
गतिए जती वृत्तिओ हवे शमवा मांडे छे, अने विचारनी दिशा वारंवार चैतन्य