Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : मागशर : २४९९
न रहे. तेम पुद्गलनी कर्म वगेरेरूप अवस्था, तेमां ते पुद्गलो प्रसरीने ते – रूपे
पोते थाय छे, तेथी ते ज तेना कर्ता छे. जो चेतनरूप जीव ते जडकर्मने करे तो ते
पोते जडरूप थई जाय, एटले जीवनुं अस्तित्व ज न रहे. अरे भाई! अचेतननो
कर्ता थवा जतां तारा अस्तित्वनो ज लोप थई जाय छे. जड–चेतनना भिन्न
अस्तित्वने ओळखतां कर्ता–कर्मनी बुद्धि छूटी जाय छे. ने चेतनतत्त्व पोताना
चेतनभावरूप कार्य वडे शोभी ऊठे छे. आ कार्य ते मोक्षमार्गनुं कार्य छे, ते ज
धर्मीनुं कार्य छे.
परिणामी वस्तुना परिणाम–ते तेनो धर्म छे. ते परिणामनो कर्ता बीजो होई
शके नहि. हवे जे परिणाम थाय छे तेनो कर्ता त्रिकाळी द्रव्य अभेदपणे कहेवाय, पण
खरेखर पर्यायस्वभावथी ज ते परिणामनुं कर्तृत्व छे. जीवना परिणामनो दाता कोई
बीजो नथी. द्रव्य–गुण–पर्यायरूप वस्तुस्वभाव छे, जेम द्रव्य–गुणना दाता कोई नथी,
तेम पर्यायनो दाता कोई बीजो नथी.
आवो आत्मा, बीजानी सहाय वगर पोते पोताथी स्वसंवेदन – प्रत्यक्ष थई
शके तेवो छे. प्रत्यक्ष थवानो तेनो स्वभाव छे. प्रवचनसारमां तेनुं सुंदर वर्णन
अलिंगग्रहणना अर्थमां कर्युं छे.
पोतानी ज्ञानपर्यायपणे उपजतो जीव ते पोताना पर्यायस्वभावथी ज ते रूपे
ऊपज्यो छे, गुरु कांई तेनी ज्ञानपर्यायना दाता नथी. उपकारनी भाषामां भले एम
कहेवाय के गुरुए ज्ञान आप्युं; पण सिद्धांतमां वस्तुस्वरूप तेम नथी.
ज्ञानस्वरूपी जीव पोते पोताना स्वरूपथी ज उत्पाद– व्ययरूप परिणमे छे. ते
उत्पाद – व्यय धर्म ध्रुवने लीधे नथी, ने परने लीधे पण ते नथी.
अहीं आचार्यदेव कहे छे के – ज्ञानानंदरूप आत्मानो स्वभाव जो विकारने करे
तो विकारनुं कर्तृत्व कदी छूटे नहीं. एटले शुद्धस्वभावमां तो विकारनुं कर्तृत्व नथी, अने
ते स्वभावमां जेनी द्रष्टि छे ते पण विकारनो कर्ता नथी.
आत्मा परनी पर्यायने करे तो आत्मा पररूप थई जाय; परचीज आत्माना
परिणामने करे तो ते परवस्तु आत्मारूप थई जाय – आ रीते बंने द्रव्यना
अस्तित्वनो लोप थई जाय. माटे परिणाम – परिणामीभावथी द्रव्य पोते ज पोताना
परिणामनुं कर्ता छे; एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कर्ता नथी.