Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : मागशर : २४९९
छे. देहात्मबुद्धि टळी जवाथी तेने घणी आकुळता ओछी थयेली जणाय. – आम
सम्यग्द्रर्शनना प्रत्यक्ष फळने ते आत्मामां निरंतर अनुभवतो होय; सम्यग्द्रर्शनवडे
भवाटवीमांथी बहार नीकळीने सिद्धालयमां प्रस्थान करवानुं मंगळमुहूर्त करीने हवे ते
सम्यग्द्रर्शनना आधारे – आधारे जीवनने उज्जवळ करतो – करतो मुक्तिपुरीमां
चाल्यो जाय छे.
(नोंध: सम्यग्द्रर्शन जेने थयुं होय ते ज तेना द्वारा थता अनुभवनुं वर्णन
यर्थाथ करी शके. अमाराथी तो वांचेलुं– सांभळेलुं के तेवा जीवने जोवाथी थयेला
भावोनुं ज वर्णन शक््य बने. आ लखतां – लखतां एवा सम्यक्त्वसंबंधी भावोनुं जे
खूब – खूब घोलन थयुं ने तेनो ऊंडो महिमा जाग्यो ते ज महान लाभ छे.)
* * *
आत्मसन्मुख जीवनी
सम्यक्त्व – साधना
(सम्यग्द्रर्शन – लेखमाळा: लेख नं. ४ ले: कोकिलाबेन सोमचंद जैन अमदावाद.)
जैनमार्गने भूलीने भौतिक पदार्थोमां सुख माननारा दुनियाना जीवो
भोगसन्मुख दोडी रह्या छे, अने तेमना मनमांनी ज्वाळाओ भभूकी रही छे; हवे
तेमांथी कोईक विरल जीव – के जेने ज्ञानी–गुरुओना प्रतापे आध्यात्मिक सुखनी
भावना जागी छे, जेने अपूर्व आत्मशांतिनो मार्ग प्राप्त करवो छे, आत्माने
ओळखीने तेनी साधना करवी छे, ए रीते दुःखमय संसारथी दूर थईने
सम्यगद्रर्शनवडे मुक्तिना महान सुखनो मार्ग लेवो छे, – तेवा आत्मसन्मुख जीवनी
रहेणीकरणी अने विचारधारा अनोखी होय छे.
सम्यक्त्वनी तैयारीवाळो ते जीव सम्यक्त्वनी पूर्वभूमिकामां प्रथम तो पोताना
ज्ञानस्वभावनो महिमा लक्षमां ल्ये छे; तेने ते स्वभाव तरफ ढळता विचारो होय छे.
कोई अमुक ज प्रकारनो विचार के विकल्प होय एवो नियम नथी, पण समुच्चयपणे
विकल्पनो रस तूटीने चैतन्यनो रस घूंटाय – एटले तेनी परिणति स्वभाव तरफ
उल्लसती जाय एवा ज परिणाम होय. कोईने हुं ज्ञान छुं एवा विचार होय, कोईने
सिद्ध जेवुं आत्मस्वरूप छे एवा विचार होय, कोईने आत्मानी अनंत शक्तिना
विचार होय – एम