ज्यारे अंतरनी कोई अद्भुत उग्र धाराथी स्वभाव तरफ ऊपडे छे त्यारे विकल्पो शांत
थवा मांडे छे, ने चैतन्यरस घूंटातो जाय छे. ते वखते विशुद्धताना अति सूक्ष्म
परिणामोनी धारा वहे छे, जीवना परिणाम स्वरूपना चिंतनमां वधु ने वधु मग्न थता
स्वभाव– महिमाने पुष्ट करतो जाय छे, पण ते वखते स्वभाव पकडवा माटे ज्ञाननी
महत्ता छे; ते ज्ञान विकल्पथी आघुं खसीने स्वभाव तरफ अंदर ढळे छे त्यारे तेने
पोताना साचा स्वरूपनी महत्ता समजाय छे, अने पोते केवो छे – तेनुं भान थाय छे.
ते एम जाणे छे के–
कंई अन्य ते मारुं जरी परमाणमात्र नथी अरे!
मुक्तिपुरी है मेरा धाम, मिलता जहां पूर्ण विश्राम.
अंश पण भले शुभ होय पण ते कांई अकषाय – शांतिनी जात तो न ज कहेवाय ने?
– एम ते जीव विकल्प अने ज्ञाननी जातने तद्न जुदी समजे छे. राग ए पोते दुःख
छे तेथी तेमां एकत्व बुद्धि करवी ते दुःखनुं मूळ छे. आत्मसन्मुख थवा ईच्छतो जीव
तेनाथी अलिप्त रहेवा प्रयत्न करे छे. ते विचारे छे के हुं कोण छुं? क्यांथी थयो छुं?
मारुं खरुं स्वरूप शुं छे? क्यां कारणे मारे आ संसारनी पळोजण छे? – हुं तेने कई
रीते तजुं? ते जाणे छे के परपदार्थ प्रत्येना मोहने लीधे ज हुं मारा आत्मस्वरूपने
बेसी शांतचित्ते आत्मस्वरूपनुं चिंतन करे छे, अंदर तेने जोवानो प्रयत्न करे छे. तरत
थोडा दिवसमां ज ते न देखाय तोपण आळस कर्यां वगर, रुचि ने धून छोड्या, वगर
ते द्रढ प्रयत्न चालु ज राखे छे.
बंनेथी रहित एवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय करे छे. ते जाणे छे के विकल्पथी निर्णय ते