Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १५ : आत्मधर्म : मागशर : २४९९
कोई पण पडखेथी जीवने पोताना स्वभाव तरफ झुकवाना विचार होय छे. पछी
ज्यारे अंतरनी कोई अद्भुत उग्र धाराथी स्वभाव तरफ ऊपडे छे त्यारे विकल्पो शांत
थवा मांडे छे, ने चैतन्यरस घूंटातो जाय छे. ते वखते विशुद्धताना अति सूक्ष्म
परिणामोनी धारा वहे छे, जीवना परिणाम स्वरूपना चिंतनमां वधु ने वधु मग्न थता
जाय छे. पहेलांं आत्माना स्वभावने लगता अनेक प्रकारनां विचार होय, तेना वडे
स्वभाव– महिमाने पुष्ट करतो जाय छे, पण ते वखते स्वभाव पकडवा माटे ज्ञाननी
महत्ता छे; ते ज्ञान विकल्पथी आघुं खसीने स्वभाव तरफ अंदर ढळे छे त्यारे तेने
पोताना साचा स्वरूपनी महत्ता समजाय छे, अने पोते केवो छे – तेनुं भान थाय छे.
ते एम जाणे छे के–
हुं एक शुद्ध सदा अरूपी ज्ञान–दर्शनमय खरे,
कंई अन्य ते मारुं जरी परमाणमात्र नथी अरे!
शुद्धातम है मेरा नाम, मात्र जानना मेरा काम;
मुक्तिपुरी है मेरा धाम, मिलता जहां पूर्ण विश्राम.
हुं शुद्ध एक छुं; रागादि भावोथी अत्यंत जुदी मारी चेतना छे. अग्निनो कण
भले नानो होय पण ते कांई बरफनी जातनो तो न ज कहेवाय ने? तेम कषाय –
अंश पण भले शुभ होय पण ते कांई अकषाय – शांतिनी जात तो न ज कहेवाय ने?
– एम ते जीव विकल्प अने ज्ञाननी जातने तद्न जुदी समजे छे. राग ए पोते दुःख
छे तेथी तेमां एकत्व बुद्धि करवी ते दुःखनुं मूळ छे. आत्मसन्मुख थवा ईच्छतो जीव
तेनाथी अलिप्त रहेवा प्रयत्न करे छे. ते विचारे छे के हुं कोण छुं? क्यांथी थयो छुं?
मारुं खरुं स्वरूप शुं छे? क्यां कारणे मारे आ संसारनी पळोजण छे? – हुं तेने कई
रीते तजुं? ते जाणे छे के परपदार्थ प्रत्येना मोहने लीधे ज हुं मारा आत्मस्वरूपने
भूल्यो छुं; तेथी सौथी पहेलां आत्माने ओळखीने मोहने छोडुं.–एम विचारी एकांतमां
बेसी शांतचित्ते आत्मस्वरूपनुं चिंतन करे छे, अंदर तेने जोवानो प्रयत्न करे छे. तरत
थोडा दिवसमां ज ते न देखाय तोपण आळस कर्यां वगर, रुचि ने धून छोड्या, वगर
ते द्रढ प्रयत्न चालु ज राखे छे.
पुण्यमय भावोथी जीवने स्वर्गादिनी प्राप्ति थाय छे, अने पापमय भावोथी
नरकादि गतिनी प्राप्ति थाय छे. संसारनी चारे गतिथी छूटवा माटे ते मुमुक्षु पुण्य – पाप
बंनेथी रहित एवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय करे छे. ते जाणे छे के विकल्पथी निर्णय ते