निर्णय क्यारे थाय? – के ज्ञानपर्याय रागथी जुदी थईने, अंतर्मुख थईने पोताना
स्वभावने अखंडस्वरूपे लक्षमां ल्ये त्यारे ज आत्मस्वरूपनो साचो निर्णय थाय छे,
अने आवा निर्णयपूर्वक ज्ञाननो झुकाव शुद्धात्मा तरफ वळे छे. आ रीते आत्मसन्मुख
थवाथी ज सिद्धिनो मार्ग खूले छे. सिद्धपदनी आराधना आत्मानी अंदर ज थाय छे.
नीरालंबी होय छे. तेओ कहे छे के हे जीव! तारे परमेश्वरने जोवा होय ने परमेश्वर
थवुं हो तो परमेश्वरनी शोध अंतरमां ज कर. परमेश्वरपणुं आत्मामां ज छे. आ रीते
मुमुक्षु जीव अंर्तशोधमां वर्ते छे.
सम्यग्द्रर्शनने ज सर्वसुखनुं मूळ कारण जाणीने तेने सेवो. आ संसारमां ते ज पुरुष
श्रेष्ठ छे, ते ज कृतार्थ छे अने ते ज पंडित छे के जेना हृदयमां निर्दोष सम्यग्द्रर्शन
प्रकाशे छे. सम्यग्द्रर्शन ज सिद्धिप्रसादनुं प्रथम सोपान छे, मोक्षमहेलनुं पहेलुं पगथियुं
सम्यग्द्रर्शन छे; ते ज दुर्गतिनां द्वारने रोकनार मजबुत कमाड छे, ते ज धर्मना झाडनुं
स्थिर मूळियुं छे, ते ज मोक्षपुरीनुं प्रवेशद्वार छे, अने ते ज शीलरूपी हारनी वचमां
लागेलुं श्रेष्ठ रत्न छे; संसारनी मोटी वेलने ते मूळमांथी ऊखेडी नांखे छे. आवो
सम्यक्त्वनो महिमा आत्मसन्मुख जीव जाणे छे तेथी तेने माटे ते अत्यंत पुरुषार्थ करे
छे. सम्यग्द्रर्शन थतां अनंत संसारनो अंत आवी जाय छे ने अनंत मोक्षसुखनो
प्रारंभ थाय छे. जेम शरीरना सर्वे अंगोमां मस्तक प्रधान छे अने मुखमां नेत्र मुख्य
छे तेम मोक्षने प्राप्त करवा माटे सर्व धर्मोमां सम्यग्द्रर्शन ज मुख्य छे.
छे. तेने आत्मानी अनुभूतिमां अतीन्द्रिय चैतन्यरसनो जे अत्यंत मधुर स्वाद
आव्यो तेमां अनंत गुणनो रस समाई जाय छे. आवा वेदनपूर्वक पर्यायमां जे
चैतन्यधारा प्रगटे छे तेमां रागादि अन्यभावोनो अभाव छे, एटले रागनो अने
ज्ञाननो स्वाद अत्यंत