वात! कोई धगधगता तापमांथी शीतळ पाणीना सरोवरमां डुबकी मारे अने तेने ठंडक
अनुभवाय, तेम आ संसारमां अनादिथी अज्ञान अने कषायना तापमां बळतो
अज्ञानी जीव चैतन्यतत्त्वनुं भान करीने शांतसरोवरमां डुबकी मारे छे, त्यां तेने
अपूर्व शांति अनुभवाय छे.
संयोग अने राग – द्वेष वच्चे पण धर्मात्मानुं ज्ञान ते ज्ञान ज रहे छे. रागथी जुदा
ज्ञानतत्त्वनी अनुभूति धर्मीने सदाय वर्ते छे, अने ते ज मोक्षनुं साधन छे. ते
धर्मीजीवने चैतन्यना आनंदनी एवी खूमारी होय छे के, दुनिया केम राजी थशे ने
दुनिया मारे माटे शुं बोलशे – ते जोवा रोकाता नथी, लोकलाजने छोडीने ए तो
पोतानी चैतन्यसाधनामां मशगुल छे.
रागादिना आलंबननी जरूर रहेती नथी. पोताना कार्य माटे बीजानुं आलंबन मांगवुं
ते कायरनुं काम छे; मोक्षना साधको शूरवीर होय छे, कोईना आलंबन वगर पोताना
स्वावलंबने ज तेओ पोताना मोक्षकार्यने साधे छे.
ज धून लागेली होय छे. दुनिया मारे माटे शुं मानशे ने शुं कहेशे – ए जोवा ते रोकातो
नथी; ते कहे छे के दुनिया दुनियाने घेर रही, मारे तो दुनियाने एककोर मुकीने मारुं
आत्महित करी लेवानुं छे. – आ रीते आत्मसन्मुख जीवने दुनियानो रस छूटी जाय छे
ने चैतन्यनो स्वाद लेवामां उपयोग वळे छे. तेने ज्ञान विकल्पनी भिन्नता भासे छे के
विकल्पनो एक अंश पण मारा ज्ञाननुं कार्य नथी. विकल्पना स्वाद करतां मारा
ज्ञाननी जात ज जुदी छे. रागनो एक अंश पण ज्ञानपणे भासतो नथी. आवा
निर्णयना जोरे एकवार जेने आत्मानो रंग चडी जाय ते जीव रागथी छूटो पडीने
ज्ञानस्वभावनो साक्षात् अनुभव करे छे. विकल्पोथी अत्यंत विरक्त थईने
ज्ञानस्वभावमां तन्मयपणे परिणम्यो ते जीव पोताने परमात्मापणे अनुभवे छे; अने
आवो अनुभव करनार जीव अल्पकाळमां साक्षात्