Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९९ आत्मधर्म : १९ :
परमात्मदशाने पामे छे. आत्मअनुभूति थवाना काळे आत्मा पोताना निजरसथी
ज अनंतगुणना शांत – अनाकुळ स्वादरूपे परिणमे छे; तेमां विकल्पनो स्वाद नथी,
एकला चैतन्यरसनो स्वाद छे.
आवा आत्मसन्मुख जीवनी रहेणी – करणी जुदी जातनी होय छे. दुनियानी
वच्चे रहेतो होवा छतां दुनियाथी जुदुं तेनुं अंतर काम करतुं होय छे. दुनियाना
विषयोनो रस छूटीने तेने तो मात्र आत्मानी धून लागे छे. कषायना प्रसंगो तेने
गमता नथी; दुनियानी पंचात ते पोताने माथे राखतो नथी. पोताना महान
आत्मतत्त्वने लक्षमां लेवा सिवाय बीजा कोई कार्योमां आत्मानी शक्ति खरचवानुं
तेने पालवतुं नथी, एटले सर्व शक्तिथी पोताना परिणामने ते आत्मा तरफ ज
वाळतो जाय छे. अरे, अनंतकाळथी मारुं किंमती स्वरूप समज्या वगर में मारा
आत्मानुं बगाडयुं छे, पण हवे आ भवमां तो मारे मारा आत्मानुं सुधारी लेवुं छे.
अपूर्व सत्समागम मळ्‌यो छे ते मारे सफळ करवो छे. हवे भवदुःखनो मने थाक
लाग्यो छे. जगतनी मोटाई मारे जोईती नथी. मारे तो मारा आत्मानी शांति
जोईए छे. – एम विचारीने ते अंतर्मुख थाय छे. एक आत्मार्थ साधवो ए ज
एनुं लक्ष छे.
हाल वर्तमानकाळमां पण आवा आत्मसन्मुख जीवो देखवामां आवे छे.
तेओनो पुरुषार्थ चालु छे अने तेओ पण आत्मअनुभव प्राप्त करशे. आवा
आत्मसन्मुख जीवो बीजा जिज्ञासुने पण आत्मानो अपार महिमा समजावीने
साचो मार्ग बतावे छे, ने कुमार्गोथी छोडावे छे. अरेरे, अत्यारे तो दुनियामां
कुगुरुओ अनेक जातनी कुयुक्तिथी भोळा जीवोने कुमार्गमां फसावे छे. दुनिया तो
सदाय एम चालवानी छे; पण हे जिज्ञासु बंधुओ! तमे आवो मजानो जैनधर्म
अने वीतरागमार्ग पाम्या, आत्मस्वरूप समजावनारा संतोनो तमने योग मळ्‌यो,
तो हवे कुगुरुओ सामे के अन्यमत सामे भूलेचूके झांखीने पण जोशो मा, – केमके
तेमां आत्मानुं घणुं ज बूरुं थाय छे. आवा सरस वीतराग – जैनमार्गने ज परम
बहुमानथी आदरजो, ते ज एक आ जगतमां परम हितकर छे. हे भाई! आ
अवसर पामीने तुं जाग. हवे ऊंघवानो समय पूरो थयो. माटे जागृत थई,
आत्माने संभाळी, भवदुःखथी छूटवानो ने मोक्षसुखने पामवानो उद्यम कर.
सम्यक्त्व – प्राप्तिनो आ सोनेरी अवसर छे.
(लेखनो बीजो भाग आवता अंके)