Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : मागशर : २४९९
(छहढाळानी त्रीजीढाळना प्रवचनो उपरथी संकलन: गतांकथी चालु)
१६६. ते मोक्षनो उपाय केवो छे?
ते पण राग वगरनो छे.
१६७. शुभरागने मोक्षनुं कारण माने तो?
तेने मोक्षनी के मोक्षना उपायनी खबर नथी.
१६८. मोक्षनां अने बंधनां कारण केवां छे?
भिन्नभिन्न छे; मोक्षनुं कारण वीतराग छे,
बंधनुं कारण राग छे.
१६९. जे मोक्षनुं कारण होय ते बंधनुं कारण
थाय? ... ना...
१७०. जे बंधनुं कारण होय ते मोक्षनुं कारण
थाय? ना...
१७१. साततत्त्वनी ओळखाण ते शुं छे?
ते वीतराग जैनधर्मनो एकडो छे.
१७२. साततत्त्व जाणीने शुं करवुं?
आत्माना शुद्धस्वभावनी अनुभूति, प्रतीत
करवी.
१७३. सामायिक क्यारे थाय?
समभावी ज्ञानस्वभावी आत्माने जाणे
त्यारे.
१७४. ते सामायिकनुं फळ शुं? ... मोक्ष.
१७प. बहिरात्मा जीव परमात्मा थई शके?
हा, ते आत्माने ओळखीने परमात्मा थई
शके छे.
१७६. एकेक जीवमां परमात्मा थवानी
ताकात कोण बतावे छे?
ए वात जैनशासन ज बतावे छे.
१७७. नरकमां पण अंतरात्मा होय?
हा; त्यां पण जे असंख्य सम्यग्द्रष्टि छे ते
अंतरात्मा छे.
१७८. अंतरात्माना गुणस्थान क्या क्या?
.. . चारथी बार.
१७९. उत्तम अंतरात्मा कोण?
सातथी बार गुणस्थानवर्ती शुद्धोपयोगी मुनि.
१८०. मध्यम अंतरात्मा कोण?
देशव्रती – श्रावक ने महाव्रती – मुनि.
१८१. सौथी नाना अंतरात्मा कोण?
सम्यग्द्रष्टि – अव्रती गृहस्थ.
१८२. ए त्रणे प्रकारना अंतरात्मा केवा छे?
ये तीनों शिवमगचारी – ते त्रणेय
मोक्षमार्गी छे.
१८३. शुं गृहस्थ पण मोक्षमार्गमां स्थित छे?
हा;
गृहस्थो मोक्षमार्गस्थ निर्मोहो।।।
(रत्नकरंडश्रावकाचार)
१८४. मनुष्यलोकमां केटला अरिहंतभगवंतो
विचरे छे?
लाखो अरिहंत परमात्मा अत्यार