: २४ : आत्मधर्म : मागशर : २४९९
२३प. सिद्धभगवंतो केवा छे?
जगतमां सौथी श्रेष्ठ छे, अनंत छे,
भवनो अंत करनारा महंत छे,
अनंत सुखवंत छे, देहरहित छे,
ज्ञानशरीरी छे.
२३६. अनंता जीव – पुद्गलो क्यां रहेलां छे?
आकाशना अनंतमा भागरूप
लोकमां.
२३७. अनंत – आकाशने पण ज्ञान पूरुं
जाणे? हा; ज्ञाननुं सामर्थ्य तेथी पण
अनंत छे.
२३८ आत्माना ज्ञानमां ईंद्रियो निमित्त तो
छे ने? ना; स्वाधीन एवा
अतीन्द्रियज्ञानमां ईंद्रियो निमित्त
पण नथी; ईन्द्रियोनुं निमित्तपणुं तो
पराधीन एवा ईन्द्रिय ज्ञानमां छे –
पण ते ज्ञानने तो हेय कह्युं छे.
अतीन्द्रिज्ञान ज आनंदनुं कारण
होवाथी उपादेय छे.
२३९. केवळज्ञानने कोई निमित्त छे?
हा, ज्ञेयपणे आखुं जगत तेने
निमित्त छे.
२४०. सत्य समजवानी शरूआत कई रीते
करवी?
वस्तुनुं पोतानुं स्वरूप लक्षमां लईने.
२४१. हाले–चाले –बोले ते जीव – ए साचुं?
ना; जे जाणे ते जीव जेनामां ज्ञान न
होय ते अजीव.
२४२. आस्रव – बंधनुं कारण शुं छे?
जीवनो अशुद्ध उपयोग.
२४३. पुण्य – पापना आस्रवो तथा बंध
केवां छे?
जीवने दुःखनां कारण छे, तेथी
छोडवा जेवां छे.
होय?
हा; जिनमार्गअनुसार तेने
बराबर तत्त्वश्रद्धा होय छे.
२४प. तत्त्वोने जाणीने शुं करवुं?
हितरूप तत्त्वोने ग्रहण करवा, ने
दुःखरूप तत्त्वोने छोडवा.
२४६. दुर्भागी कोण?
अवसर पामीने पण जे आत्माने
न ओळखे ते.
२४७. विद्यार्थीओए शुं करवुं जोईए?
तेमणे पण आवुं वीतरागी भणतर
भणवुं जोईए.
२४८. परमेश्वर केवा छे?
तेओ जगतने जाणनारा छे, पण
जगतना कर्ता नथी.
२४९. जगतना पदार्थो केवा छे?
स्वयं सत् छे. कोई तेनो कर्ता नथी.
२प०. आत्माना अनुभव वगर सर्वज्ञने
ओळखी शकाय? – ना.
२प१. शरीर छेदाय – भेदाय त्यारे जीव
शांति राखी शके?
हा; केमके जीव शरीरथी जुदो छे.
(विशेष आवता अंके)