दरियो आत्मा, तेमाथी एक बिंदु पण प्रगटतां जे आनंद
अनुभवाय छे तेवो आनंद जगतना कोई वैभवमां नथी. आवा
आनंदस्वरूप आत्मा पोते छे एटले तेनो अनुभव थई शके छे.
सम्यग्द्रष्टिना अंतरमां ते परम तत्त्व स्फूरायमान थाय छे. सहज आत्मसंपदासहित
आ परमात्मतत्त्व समाधिनी साथे ज रहे छे. राग–विकल्पो तो असमाधि छे, तेमां
चैतन्यनी संपदा नथी; आवा आत्मतत्त्वने जाणनारा धर्मात्मा पण कहे छे के अहो,
आवुं परम तत्त्व अमारी समाधिनो विषय होवा छतां, तेमां स्वसन्मुख उपयोगने
जोडया वगर तेनी निर्विकल्प शांति अनुभवाती नथी. वचनना विकल्पोमां लक्ष जाय
तेटली असमाधि छे. वचनविकल्पथी पार थईने निर्विकल्प चैतन्यध्यानमां कोई परम
अद्भुत आनंद अनुभवाय छे... ते साची समाधि छे. आवा आत्माने अनुभवनारा
जीवो ज खरेखर उत्तम आत्माओ छे. झाझो वैभव बहारमां होय के शुभराग करतो
होय तेने कांई उत्तम नथी कहेता. अरे, चैतन्यनी आनंदसंपदा पासे जगतनी
संपत्तिनी शुं किंमत छे? आनंदसंपदानो आखो दरियो आत्मा, तेमांथी एक बिंदु पण
प्रगटतां जे आनंद अनुभवाय छे तेवो आनंद जगतना कोई वैभवमां नथी. आवा
आनंदस्वरूप आत्मा पोते छे एटले तेनो अनुभव थई शके छे. क्यांय बीजे दूर एने
शोधवा जवुं पडे एवुं नथी.