Atmadharma magazine - Ank 350
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २४९९ आत्मधर्म : २७ :
अहो, आवी अंतर्मुख परिणति सिवाय बहारना बधा शुभाशुभभावो ते
तो आडंबर छे. चैतन्यभाव ते सहजभाव छे, तेमां कोई परभावनो आडंबर नथी.
शुभराग ते कांई आत्मानो सहज भाव नथी, ते तो पराश्रये थयेलो आडंबर छे.
शुभाशुभरूप बाह्य क्रियाकांडनो आधार आत्मा नथी, आत्मा तो रागवगरनी
अंतःक्रियानो आधार छे. आवा आत्मस्वभावने जाणीने तेनी सन्मुख थयेली खास
परिणति ते धर्मध्यान छे; ते ज आत्माने ध्याववानी साची सामग्री छे. बीजी बधी
सामग्री (शुभक्रियाओ) ते तो कहेवा मात्र साधन छे, परमार्थ तो ते आडंबर छे,
तेनाथी पार आत्मानी अनुभूति छे. आवी अनुभूतिमां ध्याता – ध्यान – ध्येय के
तेनुं फळ एवा भेद–विकल्पो नथी, ते तो विकल्पोथी पार अंतर्मुखाकार आत्माने ज
अवलंबनारी छे. धुव ते ध्येय ने पर्याय ते ध्याता – एवा भेद पण जेमां नथी –
एवा अंतर्मुखआकार परमतत्त्वमां उपयोगनी स्थिरता ते ज परम ध्यान छे. आवी
पोतानी शुद्ध परिणति ते ज अंतर्मुख परम सामग्री छे; –आवी खास सामग्रीवडे
जे धर्मी पोताना परमानंदमय तत्त्वने ध्यावे छे ते जीवने परम समाधि छे. आवी
समाधिरूपे परिणमेला जीवने बाह्यसाधनना आलंबननी व्यग्रता नथी. अरे जीव!
तारा आत्मा सिवाय बहारमां बीजा भगवाननुं आलंबन पण तारी समाधिमां
क््यां छे? बीजानुं आलंबन लेवा जईश तो तने असमाधि थशे. तारो आत्मा कांई
अधूरो नथी के कोई बीजानुं आलंबन लेवुं पडे. स्वभावनी सामग्रीथी परिपूर्ण
तारो आत्मा छे तेना अवलंबनमां श्रद्धा–ज्ञान–संयम–तप–ध्यान वगेरे बधुं समाई
जाय छे. आखोय मोक्षमार्ग आत्माना ज अवलंबने छे. आवा निज आत्माना
अवलंबन वगरनुं बधुं व्यर्थ छे, केमके ते संसारनुं ज कारण छे.
अहो, अंतर्मुख थईने चैतन्यनी सहज निर्विकल्प समाधिमां जेओ लीन छे,
अने द्वैतनी विकल्पजाळथी जेओ मुक्त छे – ते संतोने हुं नमुं छुं. नमुं छुं एटले के
हुं पण एवा ज आत्माने मारुं ध्येय बनावीने ते तरफ ढळुं छुं; भेदना विकल्पो
तरफ हुं नथी नमतो. चैतन्यना निर्विकल्प ध्यानमां स्थित संतो प्रत्ये मारो प्रमोद
जाहेर करीने तेमने हुं नमुं छुं.