Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९९ आत्मधर्म : ७ :
जेटलो वीतराग – अकषाय – शांतरस तेटलो आत्मा; आवो वस्तुनो स्वभाव
छे, ने आ ज जैनधर्म छे. जैनधर्म ए कांई वाडो के कूळ नथी, ए तो वस्तुनो स्वभाव
छे. शांत – चैतन्यस्वभाव आत्मा छे तेना आश्रये जे अकषाय – वीतरागदशा प्रगटी
तेनुं नाम जैनधर्म, ने ते मोक्षनो मार्ग. आ आत्मा, अने आ राग एम बंनेनुं ज्ञान
धर्मीने वर्ते छे; बे भाव जुदा छे तेने बे–पणे जाणे तो ज साचुं ज्ञान छे. जे राग अने
ज्ञानने भिन्न जाणे ते रागनो कर्ता थाय नहीं. अने जे रागनो कर्ता थईने रोकाणो छे
ते जीव ज्ञान अने रागनी भिन्नताने जाणतो नथी. रागथी जुदो चैतन्यभाव धर्मीने
द्रष्टिमां तरवरे छे; त्यां रागना वेदनने ते चैतन्यथी जुदुं जाणे छे; एटले पोते
चैतन्यस्वभावपणे ज रहेतो थको रागादि भावोनो जाणनार ज रहे छे – पण कर्ता थतो
नथी. माटे जे ज्ञाता छे ते कर्ता नथी.
अहो, ज्ञानीना मारगडा जगतथी जुदा छे. एनां माप बहारथी आवे तेवा
नथी. विकल्पवाळो जीव धर्मीनी अंतरनी निर्विकल्प चैतन्यप्रतीतनुं माप करी शके तेम
नथी. धर्मीए स्वसंवेदन वडे चैतन्यना निधान खोलीने जे ज्ञानपर्याय प्रगट करी, ते
ज्ञान रागादिने पण जाणे ज छे – पण रागरूपे थईने तेने करतुं नथी. रागने जाणतां
ज्ञान तो ज्ञानरूपे ज रहे छे, ने पोते ज्ञानरूपे जे पोताने अनुभवे छे. आनुं नाम
धर्मात्मानी ‘ज्ञप्तिक्रिया’ छे. – ते धर्म छे.
ज्ञानमां रागनो कण समाय नहीं, त्यां बहारनां बीजा कामनी शी वात? स्वमां
परनी नास्ति छे, तेम ज्ञानमां रागनी नास्ति छे, जीवनो चेतनस्वभाव; रागनो कण
पण जीवनो नथी. – अंदर भगवानना दरवाजामां पेसवानो आ मार्ग छे. अहो, आवो
सुंदर अंदरनो मार्ग! तेनी कोई पशु जेवा अज्ञानी जनो निंदा करे तोपण हे जीव! ते
सांभळीने तुं खेदखिन्न थईश मा... ने आवा सुंदर मार्गने छोडीश नहीं. तुं तारा
अंतरमां आवा मार्गने साधी लेजे. अरे, रागनो ज अनुभव करनारा, रागने ज
खानारा पशु जेवा जीवो आवा वीतरागमार्गने क््यांथी जाणे? एटले एवा जीवो निंदा
करे तोपण तुं आवा अपूर्व मार्गने भक्तिथी आदरजे. अंदर चैतन्य परमेश्वर बिराजे
छे; दरेक आत्मा परमेश्वरस्वरूप छे; पण तेनुं भान नथी, अभ्यास नथी एटले रागना
कर्तृत्वमां रोकाई गया छे. धर्मी तो ज्ञानस्वभावने अनुभवतो थको केवळ जाणनार छे.
सम्यगद्रष्टिनी पदवी कोई अलौकिक छे, तेनी किंमतनी जगतने खबर नथी. अने
सम्यग्द्रर्शन पछी चारित्रदशाना महिमानी तो शी वात? चारित्र