Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
वंतमुनि तो परमेश्वर छे – पंचपरमेष्ठीपदमां ते भळ्‌या छे. णमो लोए सव्व
त्रिकालवर्ती साहूणं एम धवलमां ‘त्रिकाळवर्ती सर्वे साधुओने नमस्कार कर्यां छे. शुं
एकला रागवाळा साधुने वंदन करे छे? ना; अंदर जे रागथी भिन्न वीतरागी
चेतनपर्याय प्रगटी छे तेने नमन करीने तेनो आदर कर्यो छे. पांचे परमेष्ठीमां
वीतराग–विज्ञानने नमस्कार कर्यां छे. केवळी भगवान जाणनार छे, ते समकितीनो
आत्मा पण जाणनार ज छे; तेने राग छे पण ते ज्ञानथी जुदापणे छे. आवा
ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव करवो ते अरिहंतनो मार्ग छे.
राग तो अंध छे, ते कांई स्व–परने देखतो नथी. ज्ञान ज चेततुं – जागतुं छे ते
स्व–परने जाणे छे. जाणवारूप ज्ञानमां रागनुं कर्तृत्व नथी. जम केवळीप्रभुना केवळ
ज्ञानमां रागनुं कर्तृत्व नथी. तेम समकितीना ज्ञानमां पण रागनुं कर्तृत्व नथी. जेम
केवळीप्रभुने जगतनो राग परज्ञेयपणे छे, तेम धर्मीने जे राग छे ते पण ज्ञानथी
भिन्न परज्ञेयपणे ज छे, ते ज्ञानमां तन्मयपणे नथी. ज्ञाननुं तो क्रोधादिनुं परिणमन
अत्यंत जुदुं छे. ज्ञानपरिणमनमां क्रोध नथी, ने क्रोधपरिणमनमां ज्ञान नथी; बंने तद्न
जुदा छे.
अरे जीव! तारामां भगवानपणुं छे; ज्ञानलक्ष्मीवाळो भगवान तुं पोते छो.
‘भगवान’ कहेता तुं संकोच पामीश नहीं. समकिती पोताना आत्माने चैतन्य
भगवानपणे अनुभवे छे. राग छे तेने जाणे छे – पण ज्ञानथी भिन्नपणे जाणे छे. माटे
जाणनार ते रागनो कर्ता नथी.
अहो, समयसार तो समयसार छे. आ असार संसारमां ‘समयसार’ एक ज
सार छे. समयसार एटले एकला शब्दो नहि पण तेना वाच्यरूप शुद्धआत्मा ते
समयसार छे. रागथी भिन्न ज्ञानभावरूपे परिणमेलो आत्मा ते पोते समयसार छे, ते
द्रव्यकर्म – भावकर्म – नोकर्मथी रहित छे. द्रव्यकर्म भावकर्म–नोकर्म त्रणेय ज्ञानथी बहार
छे. स्वानुभूति वडे आवा ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव करनार जीव पोते समयसार
छे.
जय कुंदकुंददेव... जय समयसार... जय गुरुदेव!