
चेतनपर्याय प्रगटी छे तेने नमन करीने तेनो आदर कर्यो छे. पांचे परमेष्ठीमां
वीतराग–विज्ञानने नमस्कार कर्यां छे. केवळी भगवान जाणनार छे, ते समकितीनो
आत्मा पण जाणनार ज छे; तेने राग छे पण ते ज्ञानथी जुदापणे छे. आवा
ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव करवो ते अरिहंतनो मार्ग छे.
ज्ञानमां रागनुं कर्तृत्व नथी. तेम समकितीना ज्ञानमां पण रागनुं कर्तृत्व नथी. जेम
भिन्न परज्ञेयपणे ज छे, ते ज्ञानमां तन्मयपणे नथी. ज्ञाननुं तो क्रोधादिनुं परिणमन
अत्यंत जुदुं छे. ज्ञानपरिणमनमां क्रोध नथी, ने क्रोधपरिणमनमां ज्ञान नथी; बंने तद्न
जुदा छे.
भगवानपणे अनुभवे छे. राग छे तेने जाणे छे – पण ज्ञानथी भिन्नपणे जाणे छे. माटे
जाणनार ते रागनो कर्ता नथी.
समयसार छे. रागथी भिन्न ज्ञानभावरूपे परिणमेलो आत्मा ते पोते समयसार छे, ते
द्रव्यकर्म – भावकर्म – नोकर्मथी रहित छे. द्रव्यकर्म भावकर्म–नोकर्म त्रणेय ज्ञानथी बहार
छे. स्वानुभूति वडे आवा ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव करनार जीव पोते समयसार
छे.