
रह्यो नथी. ज्ञान अने रागनी अत्यंत भिन्नाताना आवा
तेनुं आनंदकारी वर्णन छे.... अनुभूतिनां गंभीर रहस्योने ते
प्रसिद्ध करे छे.
ध्रुवमां क््यांय परद्रव्य के विकल्प नथी, पर वडे के विकल्प वडे कांई चैतन्यना उत्पाद
व्यय– ध्रुव कराता नथी; चैतन्यभावना उत्पाद– व्यय– ध्रुवने रागादि साथे कर्ता –
कर्मनो संबंध नथी; एटले धर्मीजीव कर्ता थईे पोताना चैतन्यना उत्पाद – व्यय – ध्रुवने
करे छे पण रागादिने ते करतो नथी.
चैतन्य भावमां नथी. च्ैतन्यस्वभावने अनुभवनार धर्मीजीवने ‘हुं शुद्ध छुं’ एवा
विकल्पनोय पक्ष नथी एटले तेनुं कर्तापणुं नथी. मारी चैतन्यवस्तु पुण्य – पाप
विनानी चीज छे, एवा चैतन्यस्वभावपणे पोताने लक्षमां लीधो त्यां उत्पाद–व्यय –
ध्रुव त्रणे चैतन्यरूप थया, राग – विकल्प तेमां न आव्या. जे पर्याये चैतन्यस्वभावनो
निर्णय कर्यो ते पर्याय पण चैतन्यरूप थई, ने रागथी जुदी थई गई.