Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
जेने भासतुं नथी ते जीव विकल्पसहित छे, ते ज विकल्पनो कर्ता छे. विकल्प तो दोष छे,
दोषवाळो पोताने अनुभववो ते संसारनुं मूळ छे. दोषथी भिन्न, रागथी भिन्न
ज्ञानस्वरूपे आत्माने अनुभववो ते मोक्षनुं मूळ छे. भगवानपणुं अंदर भर्युं छे तेमांथी
ते प्रगटे छे. रागमांथी भगवानपणुं नथी आवतुं.
जे करे छे ते केवळ करे ज छे, एटले के जे रागादिने अज्ञानभावे करे छे ते तो
रागादिने करे ज छे, तेने रागथी भिन्न ज्ञानभावनुं परिणमन नथी. अने जे जाणे छे,
एटले के जाणवारूप परिणमे छे ते केवळ ज्ञानभावने ज करे छे, ते रागने करतो नथी.
आ रीते रागक्रियाने अने ज्ञानक्रियाने अत्यंत जुदाई छे.
अहो, आत्मानो पोतानो जाणकस्वभाव छे, तेमां रागने करवानो स्वभाव
नथी. छतां रागमां एकता मानीने तेनो जे कर्ता थाय छे ते ज्ञानस्वभावने जाणतो
नथी. अरे, ज्ञानस्वभावी पदार्थ रागने केम करे? ज्ञानस्वभावमां तन्मय थईने
आनंदरूपे जे परिणम्यो तेनी ज्ञान–आनंदमय परिणतिमां रागनुं कर्तृत्व रहेतुं नथी.
अनंतकाळे नहि करेल एवुं सम्यग्द्रर्शन जेणे कर्युं छे – तेनी आवी दशा होय छे – ते
जाणे छे एटले ज्ञानभावरूपे ज पोताने वेदे छे, ते विकल्परूपे पोताने अनुभवतो नथी.
मारुं होवापणुं तो ज्ञानसत्तारूप छे एम धर्मी अनुभवे छे. बापु! भवरोगने
मटाडवानी दवा तो आ छे. रागना कर्तापणारूप रोग छे ते आत्माना अनुभववडे मटे
छे. सम्यग्द्रर्शनमां धर्मीने अखंड आत्मानुं भान थतां जे ज्ञानपर्याय प्रगटी तेनो ते कर्ता
छे, पण ते काळे रागादि होय ते खरेखर धर्मीनुं कार्य नथी. तेथी कहे छे के
करे करम सोही करतारा,
जो जाने सो जाननहारा.
जाने सो करता नहीं होई,
करता सो जाने नहीं कोई,
चैतन्यना आनंदना वेदन पासे धर्मीने विकल्पमां आकुळता देखाय छे, अहा,
चैतन्यनी शांतिनुं ज्यां वेदन थयुं त्यां रागादिने ते शांति साथे मेळवतां धर्मीने ते
रागादिमां आकुळता ज भासे छे, तेथी धर्मी तेनो कर्ता थतो नथी. रागनो कर्ता थाय ते
चैतन्यनी शांतिने जाणी शके नहीं. चैतन्यनो वीतराग अकषाय शांतरस जेणे चाख्यो
नथी तेने शुभरागमां शांति लागे छे. पण धर्मी तो चैतन्यनी शांति पासे शुभरागनेय
दुःख अने आकुळता ज जाणे छे.