Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 45

background image
: पोष : २४९९ आत्मधर्म : ११ :
पर्याये ज्यां अंतर्मुख थईने शुद्धआत्माने अनुभव्यो त्यां तेमां बंधपद्धत्ति (शुभा शुभ
विकल्पो) रहेता ज नथी; ज्ञान तेनाथी जुदुं पडी गयुं एटले तेणे बंधपद्धत्तिने छोडी
दीधी एम कहेवाय छे.
उत्पाद–व्यय ने ध्रुव त्रण भेद अनुभवमां रहेता नथी; त्रणरूप एक चैतन्यवस्तु
छे, तेना अनुभवमां विकल्पनी जाळ उत्पन्न थती नथी. अपार एवा समयसारने
स्वसंवेदनमां साक्षात् करीने धर्मी कहे छे के अमे अमारा अपार चैतन्यतत्त्वने बंध
भावोथी जुदुं ज अनुभवीए छीए ते अनुभवमां ‘ध्रुव छुं – एक छुं’ एवा पण विकल्प
रहेता नथी. शुद्धात्माने हुं विकल्पवडे नथी अनुभवतो, पण चैतन्यभाव वडे ज
अनुभवुं छे.
निर्विकल्प अनुभव थतां, केवळज्ञानादि अपार गुणवाळा समयसाररूपी
परमात्मानो अनुभव ज वर्ते छे; तेमां पर्याय पण भेगी ज छे. पण आ पर्याय छे ने हुं
अनुभव करुं छुं एवा कोई भेद–विकल्प त्यां रहेता नथी. ‘आ द्रव्य, आ पर्याय’ एवा
भेदना विकल्प अनुभवमां रहेतां नथी. विकल्पमां तो आकुळता छे; अनुभवमां
निर्विकल्प आनंदनुं वेदन छे. जुओ, आ समयग्द्रर्शन थवानी दशानुं वर्णन छे. मुनिपणुं
वगेरे तो सम्यग्द्रर्शनपूर्वकनी घणी ऊंची वीतरागदशा छे; पण सम्यग्द्रर्शनना
अनुभवनी दशा पण अलौकिक छे.
आवुं सम्यग्द्रर्शन केम थाय तेनी अपूर्व वात आ १४४ मी गाथामां आचार्यदेवे
समजावी छे. जे खरेखर समस्त नयपक्षो वडे खंडित थतो नथी एटले जेनी
अनुभूतिमां समस्त विकल्प – व्यापार अटकी गयो छे, एवी अनुभूतिरूपे परिणमेला
आत्माने ‘समयसार’ कहेवामां आवे छे. जुओ, शुद्ध परिणतिरूपे परिणमेला आत्माने
‘समयसार’ कहेवाय छे; तेने ज सम्यग्द्रर्शन, सम्यग्ज्ञान, अनुभूति वगेरे नामथी
कहेवाय छे. एकला द्रव्यने समयसार न कह्यो, पण शुद्ध पर्यायरूपे परिणमेला आत्माने
ज ‘समयसार’ कह्यो छे.
विकल्पातीत, ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप आत्मा
ते ज सम्यग्द्रर्शन छे, ते ज समयसार छे
ज्ञाननी अनुभूतिरूप थयेलो आत्मा विकल्पोथी जुदो छे, ते समयसार छे. स्व–