Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
भावथी तो सदा शुद्ध छे, पर्यायमां शुद्ध थईने अनुभव कर्यो त्यारे तेने ‘समयसार’
कह्यो. ते नयपक्षना विकल्पवडे खंडित थतो नथी, केमके ते विकल्पथी जुदो ज छे,
विकल्पनो तेमां प्रवेश ज नथी. आवा समयसारने एकने ज सम्यग्द्रर्शन वगेरे नाम
अपाय छे. ते अलौकिक चीज छे, बीजा कोई वडे तेनुं मूल्यांकन थई शके नहीं. संयोग
वडे के शुभराग वडे सम्यग्द्रर्शननी किंमत टांकी शकाय नहीं.
सम्यग्दर्शन माटे प्रथम तो पोताना ज्ञानस्वभावनो निर्णय करवो; ते निर्णय
कोई विकल्पना अवलंबने नहि पण श्रुतज्ञानना अवलंबन वडे ज थाय छे.
ज्ञानस्वभाव विकल्पथी पार छे तेने निर्णयमां लेतां, मति – श्रुतज्ञान ईन्द्रिय – मनथी
छूटीने अंतरमां स्वभावसन्मुख थईने आत्माने अनुभवे छे, – सम्यक्पणे देखे छे अने
श्रद्धे छे, ते ज सम्यग्द्रर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे. आवा भावस्वरूप थयेला आत्माने
सम्यग्द्रर्शन अने सम्यग्ज्ञान नाम मळे छे. तेणे ज्ञाननी जातरूप थईने ज्ञाननो
अनुभव कर्यो, आनंदना वेदन सहित ज्ञाननी अनुभूति थई, ते ज सम्यग्द्रर्शन ने
सम्यग्ज्ञान छे.
शुद्ध के अशुद्ध, एक के अनेक एवा नयोना विकल्पो ते तो दुःख छे, आकुळता छे,
आत्मानी अनुभूति करनार जीव अंतर्मुख ज्ञानवडे ते समस्त नयपक्षोने ओळंगी गयो
छे. जेणे आवी अनुभूति करी ते जीव सिद्धना पाटले बेठो, एने हवे आत्माना हितनो
धंधो करतां आवडशे, एटले सम्यग्द्रर्शन उपरांत चारित्र – वीतरागताने केवळज्ञानने ते
साधशे. आ तो संतोना अंतरनी वातुं छे.
अहो! समयसार एटले तो भरतक्षेत्रमां केवळज्ञाननो दीवडो छे.... जेना
भावनुं भासन आत्मानी अनुभूति आपे छे. आ समयसार तो आत्माना अनुभवने
प्रकाशनारो अद्वितीय दीवडो छे. जगत माने – न माने तेनी साथे धर्मीने शुं संबंध छे?
फूल पोते स्वभावथी सुगंधी छे, ते जंगलमां हो के गामनी वच्चे हो, कोई तेनी सुगंधने
सूंघे ने न सूंघे, तेनी साथे फूलने संबंध नथी, ते तो पोताना स्वभावथी सुंगधपणे
खीले छे; सुगंधपणे खीलवुं ए तेनो स्वभाव ज छे, तेम धर्मी जीव पोतानी शांतिने
पोतामां वेदे छे. बहारमां पुण्यना ठाठ हो के न हो, लोको एने माने के न माने, तेनी
साथे धर्मीनी शांतिनो संबंध नथी, ते तो पोताना आत्माने माटे ज पोताना
स्वभावथी शांतभावरूप परिणामे छे, ने पोते पोतानी शांतिने वेदीने तृप्त थाय छे.
बीजा माने तो ज अहीं शांति थाय – एवुं कांई नथी.