
कह्यो. ते नयपक्षना विकल्पवडे खंडित थतो नथी, केमके ते विकल्पथी जुदो ज छे,
विकल्पनो तेमां प्रवेश ज नथी. आवा समयसारने एकने ज सम्यग्द्रर्शन वगेरे नाम
अपाय छे. ते अलौकिक चीज छे, बीजा कोई वडे तेनुं मूल्यांकन थई शके नहीं. संयोग
वडे के शुभराग वडे सम्यग्द्रर्शननी किंमत टांकी शकाय नहीं.
छूटीने अंतरमां स्वभावसन्मुख थईने आत्माने अनुभवे छे, – सम्यक्पणे देखे छे अने
श्रद्धे छे, ते ज सम्यग्द्रर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे. आवा भावस्वरूप थयेला आत्माने
सम्यग्द्रर्शन अने सम्यग्ज्ञान नाम मळे छे. तेणे ज्ञाननी जातरूप थईने ज्ञाननो
अनुभव कर्यो, आनंदना वेदन सहित ज्ञाननी अनुभूति थई, ते ज सम्यग्द्रर्शन ने
सम्यग्ज्ञान छे.
छे. जेणे आवी अनुभूति करी ते जीव सिद्धना पाटले बेठो, एने हवे आत्माना हितनो
धंधो करतां आवडशे, एटले सम्यग्द्रर्शन उपरांत चारित्र – वीतरागताने केवळज्ञानने ते
साधशे. आ तो संतोना अंतरनी वातुं छे.
प्रकाशनारो अद्वितीय दीवडो छे. जगत माने – न माने तेनी साथे धर्मीने शुं संबंध छे?
फूल पोते स्वभावथी सुगंधी छे, ते जंगलमां हो के गामनी वच्चे हो, कोई तेनी सुगंधने
खीले छे; सुगंधपणे खीलवुं ए तेनो स्वभाव ज छे, तेम धर्मी जीव पोतानी शांतिने
पोतामां वेदे छे. बहारमां पुण्यना ठाठ हो के न हो, लोको एने माने के न माने, तेनी
साथे धर्मीनी शांतिनो संबंध नथी, ते तो पोताना आत्माने माटे ज पोताना
स्वभावथी शांतभावरूप परिणामे छे, ने पोते पोतानी शांतिने वेदीने तृप्त थाय छे.
बीजा माने तो ज अहीं शांति थाय – एवुं कांई नथी.