Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
अहो, निर्णयमां केटली ताकात छे! विकल्पथी लाभ माने ते निर्णय साचो नहि.
‘ज्ञानस्वभाव’ ज त्यारे नककी थाय के विकल्पथी जुदो पडे त्यारे; केमके ज्ञानस्वभावमां
विकल्पनी तो नास्ति ज छे. भाई! आत्माना अनुभवनी रमतुं जुदी छे. – जेनो
निर्णय करतां आखी दुनियानो रस ऊडी जाय; आखी दुनिया फरे तोय एनो निर्णय न
फरे. केमके ते निर्णयमां ज्ञानस्वभावनुं ज अवलंबन छे, बीजा कोईनुं अवलंबन एमां
नथी. भाई! एकवार हैयुं सरखुं राखीने आवा ज्ञानस्वभावनो निर्णय कर. ‘ज्ञान
स्वभाव छुं’ एम निर्णय करवा जाय त्यां रागनी – पुण्यनी – संयोगनी होंश रहे नहीं,
केमके तेनाथी जुदा ज्ञानस्वभावनो निर्णय करवो छे, ते निर्णय करवा माटे
अंतरस्वभाव तरफ ज्ञान ढळे छे. वच्चे विकल्प होय छे पण ज्ञाननो झुकाव ते विकल्प
तरफ नथी, ज्ञाननो झुकाव ज्ञानस्वभाव तरफ ज छे; ते ज्ञान कांई विकल्पने रचतुं नथी,
जुदुं रहे छे. (ज्ञानस्वभावना अपूर्व निर्णयनी वात सांभळता मुमुक्षुओ डोली ऊठे छे
ने कहे छे के अहो! (आत्माना अनुभवनी एकदम सरस वात छे!)
भगवान! तारा स्वभावना निर्णयनी वात पण अपूर्व छे ज्ञानस्वभावनो
निर्णय करनारने बीजा कोईनो महिमा रहेतो नथी, के तेना वडे पोतानी मोटाई
भासती नथी. अहो, आवो ज्ञानस्वभाव प्रसिद्ध करीने ‘आत्मख्याति’ मां आचार्यदेवे
कमाल करी छे! भाई, ज्ञानस्वभावनो निर्णय करवा जईश त्यां विकल्पमांथी तारी बुद्धि
हटी जशे. आवो निर्णय करे ते ज्ञानस्वभाव तरफ झुकीने निर्विकल्प अनुभव करे छे.
अहो, चैतन्यना अनंत किरणोनो प्रकाश अनुभवमां झळकी ऊठे छे.... अनंत गुणनां
किरणो एक साथे फूटे छे. जे अनुभूतिमां भगवान प्रगट्या तेनी शी वात! बापु, तारी
अनुभूतिमां तारो चैतन्य भगवान न आवे ने एकली पामरतारूपे ज तुं तने देख तो
तारो साचो आत्मा तें देख्यो नथी, भगवाने कहेला ज्ञानस्वभावने तें निर्णयमां पण
लीधो नथी. अरे, एकवार ज्ञानस्वभावने लक्षमां लईने तेनो निर्णय तो कर. निर्णयमां
साचुं स्वरूप आव्या वगर तुं अनुभव कोनो करीश? माटे कह्युं के प्रथम ज ज्ञानस्वभाव
आत्मानो निर्णय करवो.
आ वात कोई साधारण नथी; आ तो अंतरना स्वभावने अनुभवमां
लईने पर्यायमां प्रसिद्ध करवानी अपूर्व वात छे. मोक्षलक्ष्मीने माटे आ
केवळीप्रभुनां कहेण छे. स्वभावना गंभीरभावो आमां भर्या छे. जे लक्षमां लेतां
राग वगरनी अनुभूतिमां आत्मानो साक्षात्कार थाय, परमेश्वर आत्मा पोतानी
पर्यायमां प्रसिद्ध थाय – एवो स्वभाव बताव्यो छे. आ टीकानुं