: पोष : २४९९ आत्मधर्म : १५ :
नाम पण ‘आत्मख्याति’ छे; आत्मख्याति एटले आत्मानी प्रसिद्धि, आत्मानी
अनुभूति केम थाय ते आचार्यभगवाने आमां बताव्युं छे.
ज्ञानस्वभावनो निर्णय कर्यां पछी साक्षात् अनुभव केम थाय एटले सम्यग्दर्शन
केम थाय? ते अद्भुत शैलीथी समजाव्युं छे. निर्णय करनार जीव पोताना मति
श्रुतज्ञानने आत्मसन्मुख करे छे. विकल्प तो परसन्मुख छे; ते कांई आत्मसन्मुख थई
शकतो नथी; विकल्पथी छूटुं पडीने अतीन्द्रिय थयेलुं ज्ञान ज आत्मसन्मुख थाय छे, ने
ते ज्ञान निर्विकल्प विज्ञानघन विज्ञानघन आत्माने साक्षात् अनुभवे छे. – आवी
अनुभूति ते ज सम्यग्द्रर्शनने सम्यग्ज्ञान छे, ते ज अतीन्द्रिय आनंद छे; तेमां एक साथे
अनंत गुणनी निर्मळतानी अनुभूति छे; तेथी जे कांई कहो ते बधुं आ एक
अनुभूतिमां ज समाय छे.... आवी अनुभूतिस्वरूप थयेलो आत्मा ते ज समयसार
छे... . ते ज समयनो सार छे.
[वीर सं. २४९८ ना आत्मधर्मना ग्राहकोने अपायेलुं भेटपुस्तक]
सौने गमी जाय, ने स्वाध्याय करतां शांति आपे एवुं, ३६८ पानानुं
आ सचित्र पुस्तक दरेक जिज्ञासुए वांचवा योग्य छे. किंमत रूा. ३.२प
(पोस्टथी मंगावनारे चार रूपिया मोकलवा,)
रत्नसंग्रहण (एकसो आध्यात्मिक रत्नोनो संग्रह) जेणे वांच्युं तेने
गम्युं: भाग १–२, दरेकनी किंमत ०–८० (पोस्टथी एक रूपियो) दर्शन
कथा – ०–७० अकलंक – निकलंक (नाटक) ०–८०
‘आत्मभावना’ भेट पुस्तक गया वर्षना ग्राहकोने अपायेल ते वर्ष
पूरुं थई गयुं छे. छतां जेमणे हजी सुधी भेटपुस्तक न मेळव्युं होय तेमणे ता.
३१ जान्युआरी सुधीमां मेळवी लेवा विनंती छे. कदाच आपनुं कुपन गुम
थयुं होय तोपण आपनुं नाम एड्रेस ने ७० पैसानी टिकिट मोकलवाथी
पुस्तक मोकलवामां आवशे. ता. ३१ जान्युआरी पछी ते पुस्तक आपवानुं
बंध थशे.