Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९९ आत्मधर्म : १७ :
वीतरागविज्ञान–प्रश्नोत्तरी
(छहढाळानी त्रीजी ढाळना प्रवचनो उपरथी संकलन: गतांकथी चालु)
२प२.


२प३.


२प४.



२पप.



२प६.


२प७.

२प८.

२प९.
जीवनी भूल क््यारे छूटे?
पोतानी भूलने, तेमज पोताना
गुणने जाणे त्यारे.
जीवने सुख – दुःखनुं कारण कोण?
पोताना गुण – दोष; बीजुं कोई
नहीं, कर्म पण नहीं.
आत्मानो स्वभाव दुःखनुं कारण
थाय?
ना; आत्मानो स्वभाव सुखनुं ज
कारण छे.
राग के पुण्य कदी सुखनुं कारण
थाय?
ना; राग ने पुण्य तो सदाय दुःखनुं
ज कारण छे.
आम जाणनार जीव शुं करे छे?
पुण्य – पापथी जुदो पडीने आत्मा
तरफ वळे छे.
पुण्यथी भविष्यमां सुख मळशे ए
साचुं? – ना.
अज्ञानीओ कोने आदरे छे?
पुण्यने.
ज्ञानी कोने आदरे छे?
पुण्य – पाप वगरनी ज्ञानचेतनाने,
२६०.



२६१.


२६२.


२६३.

२६४.

२६प.

२६६.


२६७.
आत्माने एककोर मुकीने धर्म थई
शके?
कदी न थाय, आत्माने ओळखीने ज
धर्म थाय.
सम्यग्दर्शननां निमित्त कोण छे?
साचां देव – गुरु – धर्म सम्यक्त्वनां
निमित्त छे.
गुण शुं? पर्याय शुं?
द्रव्य शुं? टके ते गुण; पलटे ते
पर्याय; गुण पर्यायवंत द्रव्य.
वीतरागी देव कोण? – अरिहंत अने
सिद्ध.
निर्ग्रथ गुरु कोण? – आचार्य
उपाध्याय – साधु.
साचो धर्म क्यो? – सम्यक्त्वादि
वीतरागभाव.
इंडामां जीव छे?
हा; ते पंचेन्द्रिय जीव छे; तेनो
आहार ते मांसाहार ज छे.
वीतरागमार्गमां अहिंसा कोने कहे
छे?
रागादि भावोथी रहित शुद्धभाव ते
अहिंसा छे