: पोष : २४९९ आत्मधर्म : २प :
आत्मसन्मुख जीवनी सम्यक्त्व – साधना
[सम्यग्द्रर्शन – लेखमाळा: लेख नं. ४ गतांकथी चालु]
सम्यग्द्रर्शन थतां पहेलांं अने पछी जीवनी रहेणीकरणी तथा
विचारधारानुं वर्णन करती आ लेखमाळा सर्वे जिज्ञासुओने पसंद
आवी छे. चोथा लेखनो एक भाग गतांकमां आवी गयो छे,
बाकीनो भाग अहीं आप्यो छे.
श्रीगुरुना उपदेशथी जे जीव जाग्यो, आत्मानुं स्वरूप संभाळीने स्वसन्मुख थयो
ने सम्यग्द्रर्शन पाम्यो, ते जीवनुं आखुं जीवन पलटी जाय छे. जेम अग्निमांथी बरफ
बनी जाय तेम तेनुं जीवन अशांतिमांथी छूटीने परम शांत बनी जाय छे. अलबत्त,
बहारना जीवो ए देखी नथी शकता पण एनी अंदरनी आत्मतृप्ति, एनो
चैतन्यप्राप्तिनो परम संतोष, अने सतत चाली रहेली मोक्षसाधना – एने तो ए पोते
पोताना स्वसंवेदनथी सदाय जाणे छे, तेनो आखो आत्मा उलट – सुलट थई जाय छे.
अहा! ए अद्भुत दशाने वाणीथी वर्णववानुं मुश्केल छे.
मुमुक्षु लोकोनुं सद्भाग्य छे के अत्यारे आवा कळियुगमां पण सम्यग्द्रर्शननी
प्राप्तिनो पंथ बतावनारा, भावितीर्थंकर संत मळ्या छे, – जेमणे अज्ञानअंधकारमां
भटकता जीवोने ज्ञाननो प्रकाश आप्यो छे; मार्ग भूलेला जीवोने सत्य राह बताव्यो छे;
दुनियामां चालता कुदेव – कुगुरु संबंधी अनेक भ्रमणा अने कुरीवाजोमांथी अंध श्रद्धा
छोडावी छे, ने सीधी सडक जेवो सत्य मार्ग निःशंकपणे बताव्यो छे. तेमना प्रतापे
आत्महितना साचा मार्गने ओळखीने अनेक जीवो आत्मसन्मुख थया छे, तो कोई
कोई जीवो एवा पण छे के जेमणे सम्यग्द्रर्शन प्राप्त कर्युं छे.
सम्यग्द्रर्शन थया पछी आत्मसन्मुख जीवनी अंर्तदशा तथा विचारधारा पहेलांं
करतां तद्न जुदी जातनी होय छे. ते पोताने रागथी भिन्न चैतन्यनी अनुभूति स्वरूप
माने छे. ते जाणे छे के मारुं चैतन्यस्वरूप ज जगतमां सौथी श्रेष्ठ छे. आत्मा देहथी
भिन्न एक महान चैतन्यतत्त्व छे; आत्मानुं स्वरूप ईन्द्रियोथी के रागथी मापी शकाय
तेवुं नथी. आत्मा शुद्ध–बुद्ध – निर्विकल्प – उदासीन – ज्ञानआनंदस्वरूप छे. शुभा