Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९९ आत्मधर्म : २७ :
ळता अनंत छे; ते परम शांतरसनी गंभीरताथी भरेलो छे. सम्यग्द्रर्शन थया पछी ते
जीव पोताने सदाय आवो ज देखे छे. मति – श्रुतज्ञानने अंतर्मुख करीने अंतरमां
आनंदना नाथनो तेने भेटो थयो छे. ज्ञान सीधुं चैतन्यस्वभावने स्पर्शीने तेमां
एकत्वरूप परिणम्युं त्यां नयपक्षना बधा विकल्पोथी ते छुटुं पडी गयुं; अने निर्विकल्प
स्वानुभवना आनंदथी ते आत्मा स्वयमेव शोभी ऊठ्यो. जेम तीर्थंकर देवनुं शरीर
आभूषण वगर ज स्वयमेव शोभे छे तेम चैतन्यतत्त्व पोते स्वभावथी ज, विकल्प
वगर ज ज्ञान–आनंदवडे स्वयमेव शोभे छे; एनी शोभा माटे कोई विकल्पनां
आभूषणनी जरूर नथी. विकल्पना लक्षण वडे भगवान आत्मा लक्षित थतो नथी,
विकल्पथी भिन्न थयेलुं जे ज्ञान ते ज्ञानना आभूषण वडे आत्मा शोभे छे, ते
ज्ञानलक्षणवडे आत्मा लक्षित थाय छे. आवी आत्मविद्या ते साची विद्या छे, ते मोक्ष
देनारी छे.
अहा, सम्यगद्रर्शन, थतां आत्मा भगवान थई गयो, अनंता गुणो तेनामां
खीली ऊठ्या. सम्यग्द्रर्शन थतां आत्मा स्वसंवेदनज्ञानमां प्रत्यक्ष वेदाय छे.... विकल्पनुं
तरणुं खसी जतां आनंदनो मोटो पहाड देखाय छे, अने तेने एवुं वेदन थाय छे के वाह
रे वाह! में मारा चैतन्यभगवानने, मारा आनंदना दरियाने देखी लीधो. विकल्प वगर
आत्मा स्वयं आस्वादमां आवे छे; आत्माना आनंदनो स्वाद लेवा माटे वच्चे
विकल्पनी जरूर पडे तेवो आत्मा नथी. तेथी आवा आत्मानी द्रष्टि वाळो धर्मी जीव ते
विकल्पने करतो नथी, ते विकल्पथी छूटो ने छूटो ज्ञानभावरूपे रहे छे; एटले ते ज्ञाता
छे पण विकल्पनो कर्ता नथी. – आम ज्ञान अने विकल्प वच्चे कर्ता–कर्मपणुं छूटी गयुं
छे. हवे ज्ञान पोताना स्वरसमां ज मग्न रहेतुं थकुं, विकल्पोना मार्गोथी दूरथी ज पाछुं
वळी गयुं छे. विकल्पना काळे ज्ञान तो ज्ञानरस पणे ज रहे छे, ते विकल्परूप जरापण
थतुं नथी. ज्ञानने ज्ञानरसमां आववुं ए तो सहज छे, विकल्पनो बोजो एमां नथी.
आवा ज्ञानरसमां आनंद छे, शांति छे. जेम पाणीने ढाळ मळतां ते सहजपणे झडपथी
तेमां वळी जाय छे, तेम आत्मानी चैतन्य – परिणतिने भेदज्ञानरूपी अंतरमां जवानो
ढाळ मळ्‌यो त्यां विकल्पना वनमां भटकवानुं मटी गयुं ने सहजपणे अंतरमां वळीने ते
पोताना आनंदसमुद्रमां मग्न थयुं. त्यां ते आत्मानी चेतनामांथी रणकार ऊठे छे के –
थई रसिक हुं मारा चैतन्य नाथनी रे,
रागनो रस हवे हुं नहीं करुं रे....