Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
लगनी लागी मारा चैतन्यदेवनी साथ,
हवे रागनां मींढळ नहीं बांधु रे.....
अंतरना चैतन्यमां वळेलुं ज्ञान तो महा गंभीर छे. सम्यग्द्रर्शन थया पछी जीव
पोताना आनंदरसना एक अंशनेय विकल्पमां जवा देतो नथी. चैतन्यरस तो परम
शांत, तेने रागना आकुळरस साथे मेळ खाय नहीं. हिमना ढगला जेवा चैतन्यरसमां
विकल्पोनी भठ्ठी होय नहीं. – पोतामां चैतन्यनी आवी शांतिनो स्वाद चाख्यो, पछी
दुनिया शुं बोलशे? निंदा करशे के प्रशंसा करशे? ते जोवा ज्ञानी रोकाता नथी. तेने
दुनिया पासेथी प्रमाणपत्र लेवुं नथी; तेने पोताना अनुभवज्ञानवडे पोताना आत्मानुं
प्रमाणपत्र मळी गयुं छे; पोताना आत्मामांथी शांतिनुं वेदन आवी गयुं छे, हवे
बीजाने पूछवापणुं रह्युं नथी. ते निःशंक छे के अंतरमां चैतन्यना आनंदने देख्यो –
अनुभव्यो ते ज हुं छुं, मारी चैतन्यजात राग साथे मेळवाळी नथी. चैतन्य साथे तो
अतीन्द्रिय आनंदने वीतरागता शोभे, चैतन्यनी साथे राग न शोभे. आवा आत्मानी
अनुभूति सम्यग्द्रष्टिने होय छे. अनुभूतिना विशेष स्वाद वडे आत्मानुं अद्भुत स्वरूप
तेणे साक्षात् करी लीधुं छे. अहा, आत्मानी अनुभूतिमां समकिती जे अतीन्द्रिय
आनंदने अनुभवे छे तेना जेवो स्वाद जगतना कोई पदार्थमां के रागमां क्यांय नथी
आवी अंर्तअनुभूति वडे धर्मी जीव आत्मानी सिद्धिने साधे छे.
जुओ, भगवान आत्माने साधवानी आ अलौकिक रीत! महाविदेहमां सीमंधर
तीर्थंकर बिराजी रह्या छे, त्यां जईने दिव्यध्वनिमांथी आ ऊंचो माल लावीने
भगवानना आडतिया तरीके कुंदकुंदस्वामी भव्य जीवोने आपे छे. माटे हे जीवो! तमे
भगवानना आ सन्देशने आनंदथी स्वीकारीने जीवनमां ऊतारो. अहो! चैतन्यतत्त्व तो
आवुं सरस... राग वगर शोभी रह्युं छे, तेने देखीने सर्वप्रकारे प्रसन्न थाओ. अंदर
चैतन्यपाताळमां शांतरसनो आखो समुद्र भर्यो छे; ते एटलो महान छे के तेने देखतां
ज सर्वे विकल्पो तूटी जाय छे, ने ज्ञानना अतीन्द्रिय किरणोथी झगमगतुं आनंदप्रभात
खीले छे.
अहा, जेने आवो महान आत्मा साधवो छे तेने जगतनी प्रतिकूळता केवी?
आत्मार्थी जीव संयोगना आधारे हताश थईने बेसी नथी रहेतो. ते जाणे छे के,
बहारमां अनंती प्रतिकूळताना गंज होय तोपण, मारुं आनंदनुं धाम महान
चैतन्यतत्त्व छे, ते तो मने अनुकूळ ज छे, तेमां जराय प्रतिकूळता नथी. पोताना
आनंदधाममां अंदर ऊतरीने ते धर्मी मोक्षना परम सुखने अनुभवेछे. चैतन्यने