Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९९ आत्मधर्म : २९ :
जाणीने स्वघरमां आव्यो त्यां तेना अनंतकाळना परिभ्रमणना थाक ऊतरी गया.
सम्यग्द्रर्शन थया पछी आत्मसन्मुख जीवनी रहेणी – करणी बहारमां कदाच
पहेलांं जेवी लागे पण अंदरमां तो आकाश – पाताळ जेवो मोटो फेर पडी गयो छे. हवे
तेने संसारमां के रागमां रस नथी; तेने पोताना आत्मामां ज रस छे. तीव्र
पापपरिणामो हवे तेने आवतां नथी; तेना आहारादि पण योग्य मर्यादावाळा होय छे.
विषयातीत चैतन्यनी शांति पासे हवे तेने विषय – कषायोनुं जोर तूटी गयुं छे.
चैतन्यप्राप्तिना महान उल्लासथी तेनुं जीवन भरेलुं होय छे. वीतरागवाणीरूपी समुद्रना
मंथनथी जेणे शुद्ध चिद्रूप – रत्न प्राप्त कर्युं छे एवो ते सम्यग्द्रष्टि जीव चैतन्यप्राप्तिना
परम उल्लासथी कहे छे के अहो, मने सर्वोत्कृष्ट चैतन्यरत्न मळ्‌युं. सर्वज्ञभगवाननी
वाणीरूपी श्रुतसमुद्रनुं मथन करीने, कोईपण प्रकारे विधिथी में, पूर्वे कदी नहीं प्राप्त करेलुं
अने परम प्रिय एवुं शुद्ध चैतन्यरत्न प्राप्त करी लीधुं छे. चैतन्यरत्ननी प्राप्तिथी मारी
मति स्वच्छ थई गई छे, तेथी मारा चैतन्य सिवाय अन्य कोई द्रव्य मने मारुं भासतुं
नथी. आ चैतन्यरत्नने जाणी लीधा पछी हवे जगतमां मारा चैतन्यरत्नथी ऊंचो बीजो
कोई एवो पदार्थ नथी – के जे मारे माटे रम्य होय. जगतमां चैतन्यथी श्रेष्ठ बीजुं कोई
वाच्य नथी, बीजुं कोई ध्येय नथी, बीजुं कांई श्रवण योग्य नथी, बीजुं कांई प्राप्त
करवा योग्य नथी, बीजुं कोई आदेय नथी. आवुं सौथी श्रेष्ठ चैतन्यतत्त्व में प्राप्त करी
लीधुं छे. वाह, केवुं अद्भुत छे – मारुं चैतन्यरत्न!
अहो, मारुं चैतन्यतत्त्व आवुं सुंदर, परम आनंदथी भरेलुं, तेमां रागनी
आकुळता केम शोभे? सुंदर चैतन्यभावने मलिन राग साथे एकता केम होय? जेम
सज्जनता मोढा उपर मांसना लपेटा शोभे नहि तेम सत् एवा चैतन्य उपर रागना
लपेटा शोभे नहि; चैतन्यभावमां रागनुं कर्तृत्व होय नहीं. – धर्मी आवी भिन्नता
जाणे छे तेथी पोताना चैतन्यभावमां रागना कोई अंशने ते भेळवतो नथी. सुख
चैतन्यस्वभावमां छे तेने जाणे – अनुभवे तो ज चैतन्यसुखनो स्वाद आवे ने त्यारे ज
रागादिनुं कर्तृत्व छूटे – सम्यग्द्रष्टिनी दशा आवी होय छे. जे रागनो कर्ता थशे ते राग
वगरना चैतन्यनो स्वाद लई शकशे नहि; अने राग वगरना चैतन्यनो स्वाद जेणे
चाख्यो ते कदी रागनो कर्ता थशे नहीं. एक सूक्ष्म विकल्पना स्वादने पण ते ज्ञानथी
भिन्न ज जाणे छे; तेथी कह्युं छे के –
करे करम सोही करतारा, जो जाने सो जाननहारा;
जाने सो करता नहीं कोई, कर्ता सो जाने नहीं कोई.
– आवा समकिती – संत जगतमां सुखीया छे. तेमने नमस्कार हो.