Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
समयसार एटले अनुभूतिरूप थयेलो आत्मा
समसारनी १४४ मी गाथानां प्रवचननो एक भाग
आपे शरूआतना लेखोमां वांच्यो. आ बीजो भाग पण आपने
अनुभूतिना ऊंडाणमां लई जशे.
सम्यग्द्रर्शन माटे ज्ञाननी पर्याय द्वारा आत्माना स्वभावनो निर्णय करवानी आ
वात छे. भगवानना आगम ज्ञानस्वभावनो निर्णय कराववा मांगे छे. ज्ञानने भूलीने,
रागना ने शरीरना प्रेमथी जीवे भवचक्रमां भव धारण करी करीने अनंता शरीर
बदलाव्या छे. शरीरथी, रागथी ने जगतथी जुदो ज्ञानस्वभाव छे ते – हुं छुं – एम
एकवार निश्चय करे तो आखी दिशा बदली जाय. ज्ञानस्वभाव हुं छुं – एम कोई बीजाना
कारणे के रागना कारणे जाणतो नथी, पण पोताना ज्ञानवडे ज पोते पोताना
ज्ञानस्वभावने जाणे छे. वीतरागी शास्त्रो पण एम कहे छे के तारो ज्ञानस्वभाव शास्त्रना
अवलंबन वगरनो छे. ते प्रमाणे नक्क्ी कर्यां पछी ज्ञानने अंतरमां वाळतां आत्मा साचा
वेदनमां आवे छे, ने त्यारे ज सम्यग्द्रर्शन ने सम्यग्ज्ञानपणे भगवान आत्मा प्रगट
प्रसिद्ध थाय छे. मति –श्रुतज्ञानमां आत्मानुं अतीन्द्रियस्वसंवेदन करवानी ताकात छे.
स्वसंवेदन तरफ ज्ञान झूक्युं त्यां ते निर्विकल्प – अतीन्द्रिय थई जाय छे; ने अनंत गुणना
आनंदने ते वेदे छे... अहो! आवो आत्मा हुं – एम साक्षात् वेदनपूर्वक सम्यग्द्रर्शन थाय छे.
सम्यग्द्रर्शन थवा काळे अनुभूतिमां एकला आत्मानी प्रसिद्धि छे. परपदार्थनी
प्रसिद्धि त्यां नथी; परपदार्थनी प्रसिद्धिमां मन – ईन्द्रियनुं अवलंबन छे, तेने छोडीने मति
– श्रुतज्ञाने पोताना ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन लीधुं त्यां अतीन्द्रियज्ञानमां भगवान
आत्मा प्रसिद्ध थाय छे – प्रगट अनुभवमां आवे छे.
ईन्द्रिय तरफ झुकेलुं ज्ञान भगवान आत्माने प्रसिद्ध करी शकतुं नथी. तेमज मनना
विकल्पो तरफ झुकेलुं (– तेनाथी लाभ माननारुं) ज्ञान पण विकल्पातीत ज्ञानस्वभावने
अनुभवी शकतुं नथी. ज्ञानस्वभावी भगवान आत्माने प्रसिद्ध करवा माटे, एटले के
साक्षात् अनुभवमां लेवा माटे तेना तरफ ज्ञानपर्याय वाळवी जोईए, तेनी सन्मुख थाय
त्यारे ज तेने जाणी शके छे. ज्ञान अंतर्मुख थईने आत्माने अनुभवे त्यां ते
अनुभूतिमां कोई नयना विकल्पो रहेतां नथी, त्यां नयपक्षनुं आलं