: पोष : २४९९ आत्मधर्म : ३३ :
नथी, त्यां एक ज्ञानस्वभावनुं ज आलंबन छे, पर्याय अंतर्मुख थईने तेमां एकाग्र थई
छे. त्यां वीतरागी आनंदनुं ज वेदन छे, त्यां कोई आकुळता नथी. अहा, आवी
अनुभूतिनी शी वात! आवी अनुभूति थाय त्यारे सम्यग्द्रर्शन थयुं कहेवाय.
आत्मानो सुखस्वभाव अनाकुळ छे, ने विकल्पो तो आकुळता उपजावनारा
होवाथी दुःखरूप छे. ज्ञानमां दुःख के आकुळता न होय; विकल्पोमां सुख न होय. बंनेनी
जात ज जुदी छे. विकल्प – पछी भले ते आत्माना संबंधमां होय – पण तेमां आकुळता
छे; विकल्पथी भिन्न ज्ञान छे, ते ज्ञान अंतर्मुख थतां विकल्परहित नीराकुळ अतीन्द्रिय
शांतिनुं वेदन थाय छे. ते वेदनने धर्मी ज जाणे छे. अनुभूतिमां धर्मीने तो केवळज्ञानना
खजाना खूल्या छे. अहा, ज्ञानस्वभावी भगवान आत्मा तो निर्विकल्प आनंदनी पेटी छे,
आनंदनो पटारो छे, जेम पटारामां वैभव भर्यो होय ते देखीने लोको खुशी थाय छे तेम
चैतन्यना पटारामां अतीन्द्रिय आनंद वगेरे अनंत गुणनो खजानो भर्यो छे. तेने
अंतर्मुख ज्ञानवडे देखीने धर्मीजीव प्रसन्न थाय छे – आनंदित थाय छे. आत्मसन्मुख
थयेला परिणाम ते सम्यग्द्रर्शननुं कारण छे, आत्मसन्मुख थयेला परिणाम ते पोते शांति
छे, ते पोते सम्यग्द्रर्शन छे, ते पोते सम्यग्ज्ञान वगेरे छे. साधक भूमिकामां हजी
रागादिभाव छे ते अंतरना स्वसन्मुख परिणामथी जुदा छे; धर्मीनी अनुभूतिथी ते जुदा
छे. सम्यग्द्रर्शननी जे अनुभूति छे तेमां कोई राग के विकल्प नथी. श्रुतज्ञान साथे विकल्प
होय ते कांई ज्ञाननुं स्वरूप नथी, एटले ज्ञान ज्यां अंतरमां ढळ्युं त्यां विकल्पो बधा जुदा
पडी गया – बहार रही गया. एकवार ज्ञान विकल्पथी छुटुं पड्युं ते फरीने विकल्प साथे
कदी एकपणे परिणमतुं नथी. ज्ञानरूप निजरसवडे ज आत्मा प्रसिद्ध थाय छे जणाय छे.
ईन्द्रियना सहाराथी के विकल्पना अवलंबनथी आत्माने जाणी शकाय नहीं. आत्मानी
अनुभूति पक्षातिक्रांत छे, विकल्पातीत छे, ते अंतरना अतीन्द्रिय ज्ञान वडे ज
स्वसंवेदनमां आवे तेवो छे. आवी अनुभूति करनार आत्मा विश्व उपर तरतो होय एम
पोताने बधाथी भिन्न अनुभवे छे. पोताना अनुभवमां जे तत्त्व आव्युं तेवुं ज तत्त्व
सर्वज्ञ भगवाने कह्युं छे – एम ते निःशंक जाणे छे. अनुभूति थतां निर्मळपर्याय द्रव्यमां
प्रसरी गई एम कहेवाय छे. रागथी ज्ञान भिन्न रहे छे एटले ते तरतुं छे. ज्ञान रागमां
तन्मय थईने डुबी जतुं नथी पण रागथी छूटुं ने छूटुं, तरतुं ने तरतुं ज रहे छे. रागथी
भिन्न आत्मानी अनुभूति वखते ज आत्मा साचा स्वरूपे देखाय छे – श्रद्धाय छे अने
जणाय छे. – आ रीते अनुभूतिस्वरूप थयेलो आत्मा ज पोते सम्यग्द्रर्शन ने सम्यग्ज्ञान
छे; तेमज अनंतगुणनो स्वाद एमां समाय छे.