Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
त्रीजुं नाम कुंदकुंदाचार्यदेवनुं आवे छे, मंगलं कुंदकुंदार्यो – आवा मंगळरूप आचार्य
देवनी आचार्यपदवीनो आजे महान दिवस छे, ने आपणे अहीं पण आजे (मशीनथी
आरसमां) समयसार कोतरवानी मंगल शरूआत थई छे.
आजे ‘पोष वद आठम’ ने बुधवार छे. बुध एटले ज्ञान, ज्ञाननो वार, एटले
ज्ञाननी परिणतिनो अवसर, ते ज्ञानने देखाडनारुं आ समयसार– शास्त्र छे. आत्मानी
अनुभवदशामां झुलतां झुलतां शास्त्र–रचनानो विकल्प आव्यो ने आ समयसारादि
शास्त्रोनी रचना थई गई; तेमां विकल्पनुं के वाणीनुं कर्तृत्व तेमना ज्ञानमां नथी,
ज्ञानना स्व–परप्रकाशक सामर्थ्यमां विकल्प अने वाणी परज्ञेयपणे जणाई जाय छे.
सम्यग्द्रष्टि पोताना ज्ञानरूपे परिणमे छे, तेमां विकल्पनुं के वचननुं कर्तृत्व नथी;
सम्यग्द्रर्शनमां चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदस्वादनुं वेदन होय छे, ने ते अंश द्वारा ‘मारो
आखो आत्मा आवो आनंदमूर्ति – चैतन्मूर्ति छे’ एवुं धर्मीने भान थाय छे. आ रीते
स्वभावमां एकता ने रागथी भिन्नताना अनुभव सहित आत्मानी जे प्रतीत थई ते
सम्यग्द्रर्शन छे. एवुं स्वरूप आचार्यदेवे आत्माना वैभवथी आ समयसारमां देखाड्युं
छे. धर्मीने रागना काळे ते रागनुं ज्ञान वर्ते छे, एटले धर्मी जीव स्व. परप्रकाशक
ज्ञानपणे वर्ते छे. तेना ज्ञानमां अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप आत्मानो अनुभव वर्ते छे,
अहा, चैतन्यभगवान पूर्णानंदपणे जेने अनुभवमां आव्यो ते सम्यग्द्रर्शननी शी वात!
लोकोने सम्यग्द्रर्शन शुं चीज छे तेनी खबर नथी.
रागना काळे ज धर्मी तो स्वपरप्रकाशक ज्ञानपणे ज वर्ते छे; विकल्पपणे नथी
वर्तता. विकल्पनी अपेक्षा राख्या वगर पोते ज्ञानपणे वर्ते छे. विकल्प जणाय त्यां
‘विकल्पनुं ज्ञान’ कहेवुं ते व्यवहार छे, खरेखर ज्ञानमां विकल्पनी अपेक्षा नथी. ज्ञानी
विकल्पनो कर्ता नथी. ए वात ९प मां कळशमां आचार्यदेव कहे छे–
विकल्पकः परं कर्ता विकल्पः कर्म केवलम् ।
न जातु कर्तृकर्मत्वं सविकल्पस्य नश्यति ।। ९५ ।।
ज्ञान अने विकल्पनी भिन्नताने जे जाणतो नथी एवो अज्ञानी जीव ज
विकल्पनो कर्ता छे अने विकल्प तेनुं कर्म छे. आत्माने विकल्पवाळो ज अनुभवनार
जीवने ते विकल्पनुं कर्ताकर्मपणुं कदी नाश थतुं नथी. अने ज्ञान थया पछी विकल्पनुं