छे ते ज जीव विकल्पनो कर्ता छे. ज्ञानना अनुभवपणे परिणमनार जीव विकल्पनो कर्ता
कदी थतो नथी. अज्ञानभावथी ज जीवने विकल्पनुं कर्तापणुं छे, अने विकल्प ज
अज्ञानीनुं कर्म छे. ज्ञानमां विकल्प साथे कर्ताकर्मपणुं छूटी जाय छे. आवा ज्ञान
आनंदनो स्वाद जेणे चाख्यो नथी ते ज विकल्पनो कर्ता थईने तेने करे छे. पण
विकल्पनुं ते कर्तृत्व अज्ञानीने ते अज्ञानपर्यायमां ज छे. द्रव्य – गुणस्वभावमां
विकल्पनुं कर्तृत्व नथी, के कर्म वगेरे बीजी चीज ते विकल्पनी कर्ता नथी. अने
द्रव्यस्वभाव उपर जेनी द्रष्टि छे तेने तो ज्ञानपर्यायमां विकल्पनुं य कर्तृत्व नथी, तेने
तो ज्ञानभावनुं ज कर्तृत्व छे.
नथी. अने ज्ञानीने तो ते शुभाशुभभावना काळे ज तेनाथी भिन्न ज्ञाननुं वेदन वर्ते छे,
तेमां ते ज्ञान–आनंदना स्वादने ज वेदे छे, शुभाशुभरागनुं कर्तृत्व तेने नथी, ने
बहारथी क्रियानुं कर्तृत्व पण नथी. आवा ज्ञानस्वरूप आत्माना वेदन वगर अनंतवार
शुभक्रियाओ करीने स्वर्गमां जवा छतां जीव दुःखने ज पाम्यो; शुभरागवडे पण ते
तो दुःखरूप छे, जीवमां क्षोभ उत्पन्न करनारां छे, ने तेनाथी पार ज्ञानस्वरूप आत्मा
आनंदरूप छे, अरे, आवा आत्माने लक्षमां तो ल्यो, वीतरागदेवे कहेला आत्मतत्त्वने
ओळख्या वगर भवना आरा आवे तेम नथी.
कर्ताकर्मपणुं कदी छूटतुं नथी. अहीं तो ज्ञानस्वभावना अनुभववडे ते कर्ताकर्मपणुं केम
छूटी जाय – ते वात आचार्यभगवाने आ समयसारमां समजावी छे. ज्ञानमां विकल्पनुं
कर्तृत्व जरापण भासतुं नथी. विकल्पनो कोई अंश ज्ञानमां नथी, तेथी ज्ञानीने विकल्पनुं
कर्तापणुं जरापण नथी. ज्ञाननी परिणति अने विकल्पने करवारूप परिणति बन्ने
एकसाथे कदी होय नहीं. विकल्पने करवारूप अज्ञानक्रियामां ज्ञानक्रिया कदी होती नथी,