Atmadharma magazine - Ank 351
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : पोष : २४९९
कदी होती नथी. अहो! धर्मीने ज्यां आनंदमूर्ति आत्मानो अनुभव अंतरमां थयो छे
त्यां हवे रागनुं कर्तृत्व केवुं? सम्यगद्रर्शन थयुं त्यां आत्मामां भगवाननी प्रतिष्ठा थई,
आत्मा आनंदनो स्वाद लईने ज्ञानरूप थयो, त्यां हवे राग रही शके नहीं. तेथी द्रष्टिमां
तो आनंदमय आत्मा बिराजे छे.
जुओ, आजे तो समयसार कोतरवानी शरूआत थई.... अने अंदरमां
समयसारनी प्रतिष्ठा करवानी वात छे. धर्मीनी परिणतिमां रागनुं कर्तृत्व नथी, रागनुं
ज्ञान भले हो, पण ते ज्ञान रागथी जुदुं पृथक वर्ते छे. आवो मोक्षनो मार्ग छे. भाई!
चोराशीलाख योनिमां अवतार करी करीने अज्ञानथी तुं दुःखी थयो, तेनाथी छूटकारो
केम थाय तेनी आ वात छे.
चैतन्यप्रभु उपर जेनी द्रष्टि छे तेने वीतरागी आनंदनुं वेदन थाय छे, ने तेनो
ज ते कर्ता छे. वच्चे राग होय तेनो ते कर्ता नथी. भले दशमा गुणस्थान सुधी राग होय
– पण समकितीनी ज्ञानपर्यायमां ते राग नथी, ज्ञानथी तो ते जुदो ज छे. जेम जगतमां
छ द्रव्यो छे ते बधा पृथक् – पृथक् छे, तेम धर्मीने ज्ञान अने राग पण पृथक् – पृथक्
वर्ते छे. तेमां ज्ञानना कर्तापणे धर्मी वर्ते छे. राग तेना ज्ञानपणे वर्ततो नथी पण
ज्ञानथी जुदो ज वर्ते छे. अज्ञानी तो ज्ञान ने राग बधुं एकमेक अनुभवे छे, रागथी
जुदा ज्ञाननी तेने खबर नथी, ज्ञानना स्वादने ते जाणतो नथी, तेथी अज्ञानमां तेने
विकल्पनुं कर्ताकर्मपणुं कदी छूटतुं नथी. ने ज्ञानीने ज्ञानभावमां विकल्पनुं कर्ताकर्मपणुं
कदी थतुं नथी. अहो, सम्यग्द्रर्शन एटले तो आत्मा, सम्यग्दर्शन एटले तो समयसार, –
तेमां रागनुं कर्तृत्व केम होय? चोथा गुणस्थाने जे राग छे ते रागनुं कर्तृत्व समकितीनी
ज्ञानपर्यायमां नथी; चोथा गुणस्थाने पण धर्मीजीव पोताना ज्ञानभावने ज करे छे. छ
द्रव्यो जेम जुदां छे तेम ज्ञान अने राग जुदां छे. राग रागना घरे रह्यो, समकितीनी
ज्ञान–आनंदपर्यायमां ते नथी. समयसारनी तो रचना ज कोई अलौकिक छे, तेमां बधुंय
आवी जाय छे.
अहो, आ समयसारमां तो आत्माना अनुभवना रहस्यो खोल्यां छे. समयसार
एटले तो अजोड जगतचक्षु! समयसार ते तो केवळीप्रभुनां कहेण छे.
अहा, चैतन्यना वीतरागी आनंदना अनुभवनुं कार्य करनार धर्मी जीव रागनां
कार्य केम करे? निजात्मस्वरूप जे भगवान छे, तेना परम महिमाने अनुभवतो