Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : फागण : र४९९
साची शांतिनी शोधमां.
जेम तरस्या जीवने पाणी पीधा पहेलांं पण सरोवरना किनारे
आवतां पाणीनी ठंडक वेदाय छे... तेम सम्यक्त्वसन्मुख जीव शांतिना
समुद्रना किनारे आवेलो छे... तेने शुं थाय छे? तेनुं आ वर्णन छे.
[६]
[ले. शैलेशकुमार अनंतराय गांधी, वडोदरा]
सम्यग्दर्शन थतां पहेलांं आत्मसन्मुख जीवनी रहेणी–करणी तथा विचारधारा
केवा प्रकारनी होय? तथा सम्यग्दर्शन थया पछी तेनी रहेणी–करणी अने विचारधारा
केवा प्रकारनी होय? –आ संबंधमां सौथी प्रथम लखवानुं के ‘खरेखर सम्यग्द्रष्टि ज
सम्यग्द्रष्टिना अंतरने जाणी शके छे. ’ अमारा जेवा जिज्ञासु जीवो तेने ओळखवा माटे
प्रयत्न करे छे, ने तेवी दशानी भावना भावे छे. तेमनी ओळखाण ते भेदज्ञाननुं कारण छे.
जीव अनंतकाळथी दुःखी थई रह्यो छे; ते दुःख परना कारणे नथी, पण पोताना
स्वभावने भूलीने परभावथी ते दुःखी थई रह्यो छे. –आम जेने अंतरमां दुःखनुं वेदन
लागे छे ते सुखप्राप्तिनो पुरुषार्थ करे छे. तेने कोई ने कोई प्रकारे सत् देव–गुरु–शास्त्रनुं
निमित्त मळी जाय छे; अने तेमणे बतावेला मार्गने ते जीव उत्साहथी आदरे छे. ते
आत्मसन्मुख जीव मात्र बाह्यनिमित्तमां अटकतो नथी, पण ते गुरुवाणी
शास्त्रस्वाध्याय वगेरे द्वारा अंतरमां सुख–प्राप्तिनो रस्तो खोजे छे. जेम जेम रस्तो
मळतो जाय छे तेमतेम तेनो प्रमोद वधतो जाय छे; हजी खरेखर शांति मळी नथी होती
छतां पण शांति लागती होय छे. जेम तरस्या जीवने पाणी मळ्‌या पहेलांं पण
सरोवरना किनारे आवतां पाणीनी ठंडक वेदाय छे तेम सम्यक्त्वसन्मुख जीव शांतिना
समुद्रना किनारे आवेलो छे, तेने ते प्रकारनी शांति पोतामां देखाय छे. जेमजेम
चैतन्यनो महिमा भासतो जाय छे तेम तेम जगतना पदार्थो प्रत्ये ते उदासीन थतो
जाय छे. मारे आ जगतथी कशुं काम नथी, अने हुं पण आ जगतने कांई करी दउं तेम
नथी. आ जगत माटे हुं, अने मारे माटे आ जगत, कंई पण कार्यकारी नथी. –आवा
वैराग्यविचार द्वारा परथी जुदाई जाणीने ते पोताना आत्माने साधवा तरफ वळे छे.