: १४ : आत्मधर्म : फागण : र४९९
परमागमनी मधुरी प्रसादी
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अहो, परमागम तो खोबा भरीभरीने चैतन्य–अमृतना घूंटडा पीवडावे छे.
समयसारना संवर–अधिकार द्वारा ज्ञान अने रागनुं सर्वथा
भेदज्ञान, अने नियमसारना प्रथम अधिकार द्वारा जीवतत्त्वनुं परम
उपादेयस्वरूप (कारणपरमात्मा) –तेनुं अंतर्मुखी घोलन गुरुदेवना
प्रवचनमां चाली रह्युं छे, तेनी मधुरी प्रसादी अहीं आपी छे. गुरुदेव
घणीवार प्रमोदथी कहे छे के अहो! आ तो केवळीप्रभु पासेथी आवेलो
ऊंचो माल छे, अमे तेमना आडतिया तरीके आ माल आपीए छीए.
अहो, श्रीगुरु द्वारा मळती जिनागमनी वीतरागी प्रसादी मुमुक्षुने
आनंदित करे छे. परमागमनी मधुरी प्रसादीनो आ विभाग, श्री
परमागम–मंदिरनुं उद्घाटन थतां सुधी चालु रहेशे.
संवर–अधिकारनी शरूआतमां “ नमः सिद्धेभ्यः एम सिद्ध परमात्माने
नमस्काररूप खास मंगळ कर्युं छे. संवर ते जीवनी अपूर्व दशा छे; उपयोगस्वरूप