Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 49

background image
: फागण : र४९९ आत्मधर्म : १प :
शुद्धात्मानी सन्मुख थईने भेदज्ञान करतां संवरदशा प्रगटे छे, एटले के मोक्षमार्ग शरू
थाय छे. तेथी आवुं भेदज्ञान प्रशंसनीय छे, अभिनंदनीय छे.
धर्मी जाणे छे के हुं उपयोगस्वरूप छुं. मारो आत्मा चैतन्य–अधिकरण छे एटले
के चैतन्य भाव ज मारा आत्मानो आधार छे. उपयोग साथे ज मारे आधार
आधेयपणुं छे, रागना आधारे मारो आत्मा नथी, ने मारा उपयोगस्वरूप आत्माना
आधारे रागनी उत्पत्ति नथी, एटले रागादि साथे मारे आधार–आधेयपणुं नथी. आ
रीते रागादि भावोने अने उपयोगने सर्व प्रकारे अत्यंत भिन्नता छे.
मारा उपयोगस्वरूपनी अनुभूतिमां रागादि भावो अनुभवाता नथी; केमके ते
भावो मारा उपयोगथी जुदा छे. जेम बे द्रव्यो जुदा छे तेमने एकपणुं नथी, तेम ज्ञान
अने राग जुदा छे तेमने एकपणुं नथी.
चैतन्य अने क्रोध ए बंनेनुं एक–अधिकरण नथी, क्रोधना आधारे चैतन्य नथी,
ने चैतन्यना आधारे क्रोध नथी; माटे क्रोधने जाणतो हुं ते क्रोधरूप नथी, चैतन्यरूप ज
छुं. आचार्यदेव कहे छे के अहो, आवा भेदज्ञानरूप अनुभूति प्रशंसनीय छे, ते ज
संवरनो परम उपाय छे.
ज्ञाननी क्रिया ज्ञप्तिरूप छे, ज्ञाननी क्रिया क्रोधादिरूप नथी. आत्मा ज्ञाप्तिक्रियानो
आधार थाय ने क्रोधादिक्रियानो पण आधार थाय–एम नथी. आत्मानी ज्ञप्तिक्रियामां
क्रोधादिक्रिया नथी, ने क्रोधादिक्रियामां ज्ञप्तिक्रिया नथी. अरे, ज्ञानमां रागनो अंश केम
समाय? ने रागमांथी ज्ञाननी उत्पत्ति केम थाय? –बंनेनी जात ज तद्न जुदी छे.
अहो, मारो चेतनस्वभाव... जगतथी न्यारो... अद्भुत छे! जगतना परमाणु
के परमात्मा–ते बंने मारा ज्ञानना ज्ञेयपणे ज छे; बंने मारा ज्ञानथी बहार छे;
परमात्माने जाणतां ज्ञान तेना उपर राग करे, के परमाणुमां दुर्गंध वगेरेने जाणतां
ज्ञान तेना उपर द्वेष करे, –एवुं ज्ञाननुं स्वरूप नथी. ज्ञान तो राग–द्वेष वगरनुं
वीतराग छे.
अहा, ‘ज्ञान’ कोने कहेवाय? ज्ञान तो चैतन्यस्वादवाळुं छे. चैतन्यरसना
स्वादमां आत्माना अनंत गुणनो अत्यंत मधुर स्वाद समायेलो छे. शांतरसवाळुं ज्ञान
छे; ते ज्ञान कोई ज्ञेयने जाणतां, पोताना चैतन्यपरिणाम सिवाय बीजा कोई रागादि
भावने जरापण करतुं नथी. आवुं ज्ञान ते ज्ञानीनुं कार्य छे. ज्ञानीनो आत्मा आवा