Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : फागण : र४९९
वांचको साथे वातचीत अने तत्त्वचर्चा
आत्महितने लगती जिज्ञासाना कोई प्रश्नो आपने मुंझवता होय तो
समाधान माटे आप आ विभागमां पूछावी शको छो. संपादकने योग्य लागशे
ते प्रश्नोना जवाब आ विभागमां आपवामां आवशे. धर्मने लगती जाणवा
जेवी अवनवी वातो–प्रसंगो पण आप आ विभाग माटे मोकली शको छो.
प्रश्न :– स्त्री मोक्षनी अधिकारी थई शके?
उत्तर :– हा; सम्यक्त्व पामनार स्त्री एकबे भवमां ज मोक्षनी अधिकारी थई शके छे.
बाकी स्त्रीपर्याय राखीने कोई मोक्ष पामी शके नहि. सम्यक्त्वादिना बळे बीजा
भवे स्त्रीपर्याय छेदी, मनुष्य थई, मुनि थई, ते जीव मोक्ष पामी शके छे.
स्त्रीपर्यायमां पण ज्यां सम्यक्त्व थयुं त्यां नियमथी मोक्षनी प्राप्तिनो सिक्को
लागी गयो. ए ज रीते तिर्यंच के नारकी पण सम्यक्त्व पामीने अल्पकाळमां
मोक्षना अधिकारी बनी शके छे. मोक्षना अधिकारी थवुं होय तेणे प्रथम
सम्यक्त्वनी आराधना करवी जोईए.
प्रश्न :– सम्यग्द्रष्टिने निर्विकल्प अनुभवमां अनंत गुणो होय छे?
उत्तर :– हा; अनंतगुण वगरनो आत्मा होय नहि; अनुभूतिमां पण अनंतगुणना
रसथी एकरस थयेलो ‘आत्मस्वाद’ छे. चैतन्यना अनंतगुणोनो अभेद
रसास्वाद ते निर्विकल्पअनुभूति छे. ते अनंत आनंदमय छे.
प्रश्न :– गमे तेटलुं खाधा छतां फरीने भूख लाग्या ज करे छे, तो एवो क््यो उपाय छे के
आ भूखनुं दुःख मटे?
उत्तर :– चैतन्यस्वरूप अरूपी आत्मामां जड आहारनो प्रवेश ज नथी; आवा आत्माना
लक्षे अनाहारी भाव प्रगट थतां आहारनी वृत्ति रहेती नथी. ज्ञानमां आहार
होतो नथी. आहारसंज्ञा ते प्रमाद छे, ने अप्रमत्तभावे ज्ञानस्वरूपमां ठरतां
आहारसंज्ञा रहेती नथी, त्यां भूख लागती नथी ने दुःख रहेतुं नथी. अहा,
चैतन्यना परम अतीन्द्रिय सुखना स्वादमां मशगुल थयो ते जीवने भूखनुं
दुःख क्यांथी होय? ए तो परम तृप्त–तृप्त वर्ते छे. चैतन्यना अमृतनो स्वाद
लेवो ए ज भूखनुं दुःख मटाडवानो साचो उपाय छे. चैतन्यना आनंदना
भोजन वगर जीवने कदी तृप्ति थवानी नथी.