Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : र४९९ आत्मधर्म : ३७ :
सम्यग्दर्शननी ओळखाण
प्रश्न :– कोई जीव सम्यग्दर्शन पाम्यो छे तेने ओळखवानुं लक्षण शुं? –के जेथी बीजा
माणस सम्यग्द्रष्टि अने मिथ्याद्रष्टि वच्चेनो फरक समजी शके?
उत्तर :– एकला बहारनी क्रियाना चिह्नथी सम्यग्द्रष्टिने ओळखी शकाय नहि. जेने
पोताने सम्यक्त्वनुं स्वरूप लक्षगत थयुं होय ते ज सम्यग्द्रष्टिने खरेखर
ओळखी शके. सम्यग्दर्शन पोते अतीन्द्रिय वस्तु छे, एकला ईन्द्रियगम्य चिह्नो
द्वारा तेने ओळखी न शकाय. सम्यग्द्रष्टिनी खरी ओळखाण त्यारे थाय के
ज्यारे पोतामां ते जातनो भाव प्रगट करे. सम्यग्द्रष्टिनी ओळखाणनो भाव
पण अपूर्व छे, ने रागथी पार छे. जेम आत्मा अलिंगग्रहण एटले अतीन्द्रियग्राह्य
छे तेम तेनी सम्यक्त्वादि शुद्धदशा पण खरेखर अलिंगग्रहण एटले अतीन्द्रियग्राह्य
छे, तेने एकला ईन्द्रियगम्य अनुमानथी ओळखी शकाय नहि.
तैयारी अने प्राप्ति
प्रश्न :– सम्यग्दर्शन पामवानी तैयारीवाळा जीवनी दशा केवी होय छे? ने सम्यग्दर्शन
पाम्या पछी तेनी दशा केवी होय छे?
उत्तर :– एक आत्मअनुभवनो ज उमंग, तेनो ज रंग, वारंवार सतत तेनी ज घोलना,
निजस्वरूपनी अतिशय महत्ता, तेनी एकनी ज प्रियता, ने एना सिवाय
बधाय परभावोनी अत्यंत तूच्छता समजीने तेमां तद्न नीरसता, बीजे बधेथी
परिणाम हटावीने एक आत्मस्वरूपमां ज परिणामने लगाववानो ऊंडो उग्र
प्रयत्न;.. स्वरूपनी अप्राप्तिनो प्रथम तीव्र अजंपो, तेनी प्राप्ति माटे तीव्र
जिज्ञासारूप धगश, पछी नीकटमां ज स्वरूपनी प्राप्तिना भणकारनो परम
उल्लास–ठंडक;– आम घणा प्रकारे अनेकवार गुरुदेव सम्यक्त्वनी भूमिकानुं
वर्णन करे छे.
स्वरूप प्राप्त थयुं ने अपूर्वता थई ते तो अपार गंभीरपणे अंदर ने
अंदर ज समाय छे. ए समकितीनी परिणतिमां कोई परम उदासीनता,
अद्भुत शांति, जगतथी अलिप्तता, आत्माना अनुभवना आनंदनी कोई
अचिंत्य खुमारी–वगेरे अनंता भावोथी भरेली घणी घणी गंभीरता तो
पोताने ज्यारे स्वानुभव थाय त्यारे खबर पडे.