Atmadharma magazine - Ank 353
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : फागण : र४९९
सम्यक्त्वनी विधि
प्रश्न :– हे गुरुदेव! सम्यग्दर्शननी विधि तो आपे समजावी, पण ते समज्या पछी
परिणतिनी गुलांट केम मारवी?
उत्तर :– विधि यथार्थ समजाय त्यां परिणति गुलांट मार्या वगर रहे नहि. विकल्पजात
अने स्वभावजात ए बंनेने भिन्न जाणतांवेत ज परिणति विकल्पमांथी छूटी
पडीने स्वभावमां तन्मय थाय छे. विधिने सम्यक्पणे जाणवानो काळ अने
परिणतिने गुलांट मारवानो काळ–बंने एक ज छे. विधि जाणे पछी तेने
शीखववुं न पडे के तुं आम कर. जे विधि जाणी ते विधिथी ज्ञान अंतरमां ढळे
छे. सम्यक्त्वनी विधिने जाणनारुं ज्ञान पोते कांई रागमां तन्मय नथी,
स्वभावमां तन्मय छे. अने एवुं ज ज्ञान साची विधिने जाणे छे. रागमां
तन्मय वर्ततुं ज्ञान सम्यक्त्वनी साची विधिने जाणतुं नथी.
चैतन्यनी स्फुरणा थतां ज बधा परभावो छूटी जाय छे
प्रश्न :– असंख्यप्रकारना परभावो, –ते बधायथी छूटवा शुं करवुं? एक परभावथी
बचीए त्यां बीजो परभाव घूसी जाय छे, तो शुं करवुं?
उत्तर :– स्वभावमां प्रवेश करतां बधाय परभावो एक साथे छूटी जाय छे. स्वभावना
दरबारमां परभावनो प्रवेश नथी. स्वभावमां आव्या विना, परभावना लक्षे
परभावोथी बची शकाय नहीं. एटले एकसाथे समस्त परभावोथी बचवानो
उपाय ए छे के त्यांथी उपयोगने पाछो वाळीने स्वभावमां उपयोग मुकवो.
आ आत्मा एवो आनंदमय चैतन्यप्रकाशनो पुंज छे के एनुं स्फूरण
थतां ज (अर्थात् उपयोग तेमां झुकतां वेंत ज) समस्त परभावोनी ईन्द्रजाळ
(विकल्प तरंगो) तत्क्षण भागी जाय छे.
प्रश्न :– सम्यग्दर्शन पाम्यो त्यारे जे आनंद अनुभवायो तेनुं भाषामां वर्णन आवी
शके के केम?
उत्तर :– ए वेदननुं वाणीमां पूरुं वर्णन न आवे; अमुक वर्णन आवे, ते उपरथी सामो
जीव ‘जो तेवा लक्षवाळो होय तो’ साची स्थिति समजी जाय.