: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : १७ :
(विजयाद्धीनी गूफामां वेहती उन्मगा नदीनी जेम) परभावोने पोताथी बहार फेंकी दे
छे. ज्ञानधारामां राग प्रवेशी शके नहीं. अखंड ज्ञानधारा रागथी जुदी ने जुदी रहेती
थकी, शुद्धपणे पोताने अनुभवती थकी, वृद्धिरूप थईने केवळज्ञानरूप थाय छे.
जय हो आनंदमय अच्छिन्नधारावाही भेदज्ञाननो.
सम्यक्त्व माटे ज्ञानस्वभावनो निर्णय
* हुं ज्ञानस्वभाव छुं – एवो जे खरो निर्णय
छे तेनी संधि ज्ञानस्वभाव साथे छे,
विकल्प साथे तेनी संधि नथी.
* ज्ञान अने विकल्प बन्ने निर्णयकाळमां
होवा छतां, तेमांथी ज्ञानस्वभाव साथे
संधिनुं काम ज्ञाने कर्युं छे, विकल्पे नहि.
* ज्ञान स्वभाव साथे संधि करीने, तेना लक्षे
ऊपडेली ज्ञानधारा ज्ञानना अनुभव सुधी
पहोंची जशे.
* ज्ञानस्वभाव साथे संधि करवानी विकल्पमां
ताकात नथी. ज्ञाने स्वभावनो ‘टच’ कर्यो
त्यारे साचो निर्णय थयो.
* ज्ञानस्वभावना निर्णयमां, विकल्पथी ज्ञान
अधिक थयेलुं छे, ज्ञान अने विकल्प वच्चे
वीजळी पडी चुकी छे, बन्ने वच्चे तिराड
पडी गई छे, ते सांध हवे भेगी न थाय.
ज्ञानवडे आवा आत्मनिर्णयना बळे
सम्यक्त्व पमाय छे.