
करे छे. एम ज थया करे छे के बहारमां हवे मारे कांई नथी जोईतुं; अनंतकाळ
बहारना भावो कर्यां पण मने जराय सुख न मळ्युं. मारे तो मारुं साचुं सुख
जोईए छे. केम अपूर्व सुख मळे ने अनादिनां दुःख केम टळे? तेनो ज उपाय मारे
करवो छे. अनंतकाळथी भवभ्रमणमां रखडी–रखडीने अनंत दुःखो में भोगव्या,
हवे हुं थाक्यो छुं, कंटाळ्यो छुं. हवे ते दुःखी संसार के तेना कारणरूप पर भाव मारे
नथी जोईतो, पण साचुं मोक्षसुख ज जोईए छे. आवा–आवा अनेक प्रकारनां
साचा भावनी श्रेणीए चडतां ते मुमुक्ष जीवनी रहेणीकरणीमां जगतना जीवो करतां
कुदरती तफावत पडी जाय छे.
संपत्ति अर्पण करशे तो पण आ जीव जेवी अर्पणताना भाव नहि लावी शके. परम
महिमावंत चैतन्यतत्त्व बतावनारा देव–गुरु प्रत्ये तेने निशंकता आवी गई छे, तेथी
तेमनी पासे चैतन्यनो जे उपदेश सांभळवा मळे छे ते देशना अंदर सोंसरवी ज्ञानमां
आरपार ऊतरीने पोतानुं कार्य करी ल्ये छे.
द्रव्य साथे भेळसेळ करतो नथी; हजी सम्यक्–परिणमन थयुं न होवा छतां विचारमां
स्वतंत्रता बराबर समजाई गई छे, ने परथी भिन्नताना भावनी द्रढता वधती जाय छे,
चैतन्यनो प्रेम वधतो जाय छे. आ प्रकारे भेदज्ञाननो भाव जेम जेम वधतो जाय छे.
तेम तेम आकुळता ओछी थती जाय छे ने शांति–धीरज वधता जाय छे. ते एम विचारे
छे के अरे, बहारमां के शरीरमां मारुं धार्युं थतुं नथी; अने थाय तो पण मने शुं? ते
माराथी जुदा छे, पछी शा माटे मारे तेना कर्तापणाना खोटाभाव करीकरीने दुःखी
थवुं?–हुं तो ज्ञान छुं.–आम विचारी अकर्तास्वभावनी सन्मुख एटले के ज्ञानस्वभावनी
सन्मुख थवानो विशेष प्रयत्न अने मुख्यता वधारतो जाय छे. नवतत्त्वसंबंधी
विचारमां तेने दरेक तत्त्वनुं ज्ञान एटलुं बधुं चोख्खुं अने द्रढ थई गयुं छे के तेमां हवे
भूल थती नथी; मूळ बे तत्त्वो, अने बाकीनां पर्यायरूप सात तत्त्वो, तेनुं बराबर ज्ञान
वर्ते छे. शुभ–अशुभ भावोनो क्या तत्त्वमां समावेश थाय छे, अने धर्मदशानो क्या
तत्त्वमां समावेश थाय छे, तेनी