
तो सम्यक्त्व शुं छे तेनी खबर पण नथी. अहो, रागथी पार अंतरनो जैनमार्ग!
एनी एने खबर नथी.
भवना अभावना भणकार आत्मामां आवी जाय. रागनो कोई अंश जेमां भळे
नहि एवो चैतन्यस्वभाव, तेनी सन्मुख थयेला श्रद्धा–ज्ञान पण राग वगरना छे;
आवा श्रद्धा–ज्ञान वडे जैनमार्ग एटले मोक्षमार्ग शरू थाय छे. आवा आत्माना
श्रद्धा–ज्ञान वगर गमे तेवा शुभराग करे तोपण जैनमार्ग शरू थतो नथी, एटले के
धर्म थतो नथी.
स्वतत्त्व, तेमां रागना अंशनो पण प्रवेश नथी, मारी चैतन्यसत्ताथी राग बहार
छे–एम धर्मी बधाय रागथी पोताने जुदो जाणे छे. अज्ञानी अशुभ रागने दुःख कहे
छे ने शुभ रागमां तेने सुख लागे छे, तेथी शुभ रागथी जुदा ज्ञानना स्वादनो
तेने अनुभव नथी. आत्मभाव अने अनात्मभावनी भिन्नतानुं तेने भान नथी,
तेथी शुभरागरूप व्रतादि करवा छतां ते अज्ञानी–मिथ्याद्रष्टि ज छे.
परविषयो अने परभावो तरफथी छूटी–विरक्त होय छे, एनुं नाम वैराग्य छे.
अनुभवमां ज रोकायेली छे, रागथी जुदा ज्ञाननो अनुभव तेने नथी; ते तो
रागादि अनात्मभावने ज आत्मा मानीने अनुभवे छे, तेथी ते गमे तेटला
आगम भणेलो