Atmadharma magazine - Ank 354
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९९
* तेम परद्रव्यनी किया आत्मा करे नहि, केमके तेमां आत्मानुं अस्तित्व नथी.
जेमां पोतानुं अस्तित्व ज नथी तेनी क्रिया करवा मागे तो तेनी बुद्धि मिथ्या छे;
ए मिथ्याबुद्धि दुःखदायक छे.
जीव एक अखंड द्रव्य छे, तेनुं ज्ञानसामर्थ्य परिपूर्ण छे.–तेथी कहे छे के भाई,
परथी भिन्न तारो आत्मा नित्य सम्पूर्ण स्वगुणथी पूरो छे. तारी एकेक शक्ति नित्य ने
सम्पूर्ण छे. तारुं जीवत्व ताराथी सम्पूर्ण छे, नित्य टकता संपूर्ण जीव नथी तुं भरेलो
छो. तारामांथी ज तारुं संपूर्ण जीवन, तारुं संपूर्णज्ञान, तारुं संपूर्ण सुख प्रगट थाय–
एवो नित्य संपूर्ण तारो स्वभाव छे.
स्वनी पूर्णता स्वमां ने परनी पूर्णता परमां; त्यां कोण कोनुं शुं करे? जो वस्तुनी
पर्यायनो कर्ता बीजो होय तो वस्तुनी पूर्णता क्यां रही? अरे, तारुं आनंदमय कार्य
तारा आनंदगुणनी संम्पूर्णतामांथी ज थाय छे, बीजेथी ते आवतुं नथी. तारी
आनंदपर्यायमां शुंपरद्रव्य आव्युं छे के ते तने शांति आपे? परद्रव्य तो कांई तारी
आनंदपर्यायमां आव्युं नथी तारी आत्मवस्तु तारी निजशक्तिथी ज पोतानी
आनंदपर्यायमां वर्ते छे; बीजानो तेमां प्रवेश नथी.
अहा, स्वाधीन वस्तुस्थित समजतां स्वाश्रये अपूर्व समरस प्रगटे छे. ब्रह्मांडना
भावोथी जुदो पडीने निजस्वरूपनी सम्पूर्णतामां आव्यो, तेना आश्रये सम्पूर्ण ज्ञान,
संपूर्ण आनंद, संपूर्ण जीवन प्रगट थाय छे. आ रीते स्व–परनुं भेदज्ञान ते निज
स्वरूपनी संपूर्णताने देखाडे छे, ने तेना फळमां संपूर्णता प्रगट थाय छे.
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अरे, संसार–दुःखोथी हुं अत्यंत भयभीत छुं,
अने हवे रत्नत्रयनी अत्यंत प्रीतिपूर्वक तेनी आराधना
करवानो उद्यमी छुं – तो हवे मारे ऊंघवुं केम पालवे?
(–भगवती आराधना)
* * *
हे जीव! सूक्ष्म एवा चैतन्यतत्त्वना चिंतनमां
तारा चित्तने जोड........ तेमां तने आनंद थशे ने तारी
निंद्रा ऊडी जशे.
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